Sunday, May 5, 2024

नोएडा में अरबों के जीएसटी फर्जीवाड़े के दो आरोपियों की दिल्ली में पांच करोड़ की संपत्ति कुर्क

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नोएडा।  तीन हजार से अधिक फर्जी फर्म तैयार कर सरकार को करीब 15 हजार करोड़ रुपये की जीएसटी का नुकसान पहुंचाने वाले गिरोह के दो आरोपियों की करीब पांच करोड़ रुपये की अचल संपत्ति को बुधवार को नोएडा पुलिस ने कुर्क किया। बुधवार को कोतवाली सेक्टर-20 पुलिस की टीम ने आरोपी रोहित नागपाल के रोहिणी दिल्ली, अर्जित गोयल के भी रोहिणी दिल्ली की अचल संपति को कुर्क कर लिया। इस मामले में कुल सात आरोपियों की चल और अचल संपत्ति कुर्क होनी है। इसके लिए कोर्ट की तरफ से कुर्की के आदेश जारी किया गया  है।
अपर पुलिस उपयुक्त (जोन प्रथम) मनीष कुमार मिश्र ने बताया कि जिन आरोपियों की संपत्ति को कुर्क किया जाएगा उनमें आदर्श नगर दिल्ली निवासी अंचित गोयल,  इसके पिता प्रदीप गोयल, रोहिणी दिल्ली निवासी अर्जित गोयल, हिसार हरियाणा निवासी कुनाल मेहता उर्फ गोल्डी, हिसार निवासी बलदेव उर्फ बल्ली, मुबारकपुर दिल्ली निवासी विकास डबास और रोहिणी निवासी रोहित नागपाल शामिल हैं। पूर्व में आरोपियों के घर पर नोटिस चस्पा किया गया था। इसके बाद भी वह न्यायालय के समक्ष पेश नहीं हुए। पुलिस लगातार आरोपियों को खोज रही है, लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला। इस मामले में अब तक 29 आरोपियों की गिरफ्तारी देश के अलग-अलग हिस्से से हुई है।
नोएडा पुलिस नौ आरोपियों पर 25- 25 हजार रुपये का इनाम भी घोषित कर चुकी है। अभी भी कई आरोपी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। नोएडा कमिश्नरेट पुलिस ने बीते साल जून में करीब 3 हजार से अधिक फर्जी फर्म बनाकर 15 हजार करोड़ रुपये से अधिक के फर्जीवाड़े का खुलासा किया था। इस मामले में पुलिस ने अब तक करीब साढ़े तीन हजार शेल कंपनियों के बारे में जानकारी प्राप्त की है । साथ ही अनधिकृत गतिविधियों को रोकने के लिए 5 आरोपियों के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) जारी किए हैं। गिरोह में शामिल कई आरोपियों की संपत्ति को कुर्क किया जा चुका है। ज्यादातर आरोपी सीए हैं। नोएडा कमिश्नरेट पुलिस ने जून में करीब 3 हजार से अधिक फर्जी फर्म बनाकर 15 हजार करोड़ रुपये से अधिक के फर्जीवाड़े का खुलासा किया था।
गिरोह का पर्दाफाश करने वाले पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट के रूप में ऐसी व्यवस्था बनाई गई है, जिसमें पहले भुगतान किए गए जीएसटी के बदले में क्रेडिट मिल जाते हैं। ये क्रेडिट फर्म के जीएसटी अकाउंट में दर्ज हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि फर्जी कंपनियों द्वारा वास्तविक माल का आदान-प्रदान नहीं किया जाता है। गिरोह के आरोपियों ने, जो कंपनियां बनाई थीं, वह धरातल पर नहीं थीं, उसका वजूद महज कागजों में ही था। जाली बिल पर करोड़ों रुपये का लेनदेन दिखाया गया। सभी बिल फर्जी होते थे।
कंपनियां एक दूसरे से फर्जी तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट का आदान-प्रदान करती रहीं। फरार आरोपियों में कई के विदेश भागने की भी आशंका है। आरोपियों ने देश के अलग-अलग हिस्से में रहने वाले कामगारों से आधार कार्ड हासिल किए। इसी दस्तावेज के सहारे फर्जी पैन कार्ड का सहारा लिया और सिम भी इसी दस्तावेज से ली। बाद में इसी का इस्तेमाल जीएसटी रजिस्ट्रेशन में हुआ। कागजों पर फर्म का अस्तित्व रहा और कई साल तक आरोपी जीएसटी रिफंड के नाम पर लाभ लेते रहे।

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