आज हमारा लोकतंत्र संघर्ष कर रहा है। राम के लोकतंत्र से निकलकर हम अपने लोकतंत्र में राम का अस्तित्व ढूंढ रहे हैं। लोकतंत्र इस बात की भी परीक्षा ले रहा है कि क्या देश में कभी फिर राम जैसे राजा को स्वीकार किया जा सकता है, जो केवल धर्म के ही प्रतीक नहीं है, बल्कि न्याय, त्याग, बलिदान, ऐश्वर्य और शौर्य के भी प्रतीक है।
राम सामाजिक समरसता के वैश्विक उदाहरण है। इसी गुण के कारण विश्व आज उन्हें समझना-जानना चाहता है। उन्हें पढना चाहता है, पर दुर्भाग्य देखिए हमारे ही देश में राम को सदियों संघर्ष करना पडा, विशेष रूप से आजादी के पश्चात् के वर्षों में। इतनी बडी हानि भारतीय संस्कृति परिदृश्य में उन्हें कभी नहीं हुई, जितनी 1947 से लेकर 2014 के मध्य उन्हें हुई। उनके अस्तित्व तक पर प्रश्र उठाये गये
। वैसे आज भी अनेक क्षेत्रों में ऐसे स्वर उभरकर आते हैं, जहां जय श्रीराम कहना अलोकतांत्रिक हो जाता है। शायद भारत विश्व का अकेला लोकतंत्र है, जहां अभिव्यक्ति को आजादी के नाम पर समाज को निरकुंश कर दिया गया है। सैकुलरिज्म के नाम पर भारत समाज को निरकुंश कर अब जबकि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है, ऐसे समय भी ‘निजी विचार और ‘अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसे शब्द बाण छोडे जा रहे हैं जैसे रामभक्तों के धैर्य की परीक्षा ली जा रही हो। भगवान श्रीराम इन वाक योद्धाओं को सद्बुद्धि प्रदान करे।