Friday, April 26, 2024

न्याय यात्रा कांग्रेस के लिए नुकसानदायक क्यों साबित हो सकती है ?

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इतिहास गवाह है कि कई बार नेताओं द्वारा की गई यात्राओं ने बड़े बदलाव किये हैं, शायद यही सोचकर राहुल गांधी ने पिछले साल भारत जोड़ो यात्रा की थी । वो यात्रा कन्याकुमारी से शुरू होकर कश्मीर तक की गई थी । उस यात्रा का नाम भारत जोड़ो रखा गया था और लोग पूछ रहे थे कि भारत कहां से टूट रहा है, जिसके कारण कांग्रेस को यह यात्रा निकालनी पड़ रही है । वास्तव में वह यात्रा राहुल गांधी की छवि चमकाने के लिये निकाली गई थी । कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता जरूर उस यात्रा से खुश थे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इस यात्रा से राहुल की छवि में सुधार हुआ है ।

इस यात्रा के नाम में भी गड़बड़ है क्योंकि राहुल किसको न्याय देने निकले हैं, स्पष्ट नहीं है । वैसे भी भारत में न्याय देने का काम न्यायपालिका करती है तो इस यात्रा के नाम का कोई मतलब नहीं है । इस यात्रा का लक्ष्य क्या है और मुद्दे क्या हैं, ये स्पष्ट नहीं है ? सवाल उठता है कि ऐसी यात्रा क्यों निकाली जा रही है ? कांग्रेस इसे गैर राजनीतिक यात्रा बता रही है जो कि सरासर झूठ है । ऐन चुनावों के वक्त गैर राजनीतिक यात्रा निकालने की मूर्खता कोई पार्टी नहीं कर सकती ।

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यह यात्रा पूरी तरह से एक राजनीतिक यात्रा है । कांग्रेस इसे धार्मिक और सामाजिक न्याय देने वाली यात्रा बता रही है और उसके कार्यकर्ता ‘ सहो मत, डरो मत के नारे लगा रहे हैं । सवाल उठता है कि श्री राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के दौरान धार्मिक और सामाजिक न्याय देने की बात करके कांग्रेस देश को क्या संदेश देना चाहती है ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि कांग्रेस उन लोगों के साथ खड़ी हो गई है, जो यह दावा कर रहे हैं कि हिन्दुओं ने जबरदस्ती मस्जिद की जगह मंदिर का निर्माण कर लिया है ।

भारत जोडऩे की बात कह कर इस विमर्श के साथ खड़े होने की कोशिश देश को तोडऩे वाली मानी जाएगी । जहां तक सामाजिक न्याय की बात है तो देश पर 56 साल तक शासन करने वाली कांग्रेस ने सामाजिक न्याय क्यों नहीं दिया ? पिछले पाँच साल में ऐसी कोई बड़ी सामाजिक या धार्मिक घटना नहीं घटी है, जो इस यात्रा की जरूरत पड़ गई हो । जो यात्रा अपने नाम की सार्थकता पर खरी नहीं उतरती है, जो यात्रा अपने लक्ष्य और मुद्दों को लेकर स्पष्ट नहीं है, वो भला कांग्रेस के लिये कैसे लाभदायक हो सकती है ।

वास्तव में इस यात्रा का देश और देश की जनता से कोई लेना देना नहीं है, इसलिए जनता का जुडऩा तो इस यात्रा के साथ संभव नहीं है । यह यात्रा 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की संभावनाओं को बढ़ाने के उद्देश्य से की जा रही है, इसलिए कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं का इस यात्रा से जुडऩा स्वाभाविक है । राहुल गांधी की इस भारत जोड़ो न्याय यात्रा को सफल बनाने के लिये कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है ।

राहुल की यह यात्रा 14 जनवरी को मणिपुर से शुरू हुई है और इसमें हिस्सा लेने के लिए कांग्रेस के सैकड़ों महत्वपूर्ण नेता शामिल होने के लिए पहुंच गए हैं । लगभग पूरा कांग्रेस नेतृत्व वहां इकठ्ठा हो गया है और अपनी ताकत दिखा रहा है । मणिपुर पिछले कई महीनों से दंगों की आग में जल रहा है । अपने सैकड़ों नेताओं को मंच पर इकठ्ठा करके कांग्रेस मणिपुर की जनता को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वो इस मुसीबत में उनके साथ है । यह संदेश देना अच्छी बात है लेकिन कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि उसने मणिपुर में शांति स्थापना हेतु क्या किया है ? दो समुदायों की आपसी जंग में वो किसकी तरफ है ?

राहुल गांधी के नेतृत्व में दो महीने से भी ज्यादा लम्बी अवधि तक चलने वाली इस यात्रा में कांग्रेस को बहुत पैसा और समय खर्च करना होगा । ये कहना गलत होगा कि इस यात्रा से कांग्रेस को फायदा नहीं होगा लेकिन सवाल यह है कि कितना फायदा होगा ? दो महीने से ज्यादा चलने वाली इस यात्रा में कांग्रेस के इतने संसाधन, ऊर्जा और समय लगने वाला है कि फायदे से ज्यादा नुकसान होने की संभावना दिखाई दे रही है। इसकी सबसे पहली वजह यह है कि कांग्रेस पहले ही वित्तीय समस्या से जूझ रही है। जो पैसा इस यात्रा में खर्च होने वाला है, वो अगर चुनावों में कांग्रेस इस्तेमाल करती तो ज्यादा बेहतर होता ।

इसके अलावा कांग्रेस का पूरा संगठन इस यात्रा के दौरान इसके इंतजाम में व्यस्त रहने वाला है, जिसका असर कांग्रेस की चुनावी तैयारियों पर पड़ेगा । बेशक मल्लिकार्जुन खडग़े कांग्रेस के अध्यक्ष हैं लेकिन असली कमान तो राहुल गांधी के हाथ में ही है। हर कांग्रेसी राहुल गांधी को ही अपना नेता मानता है, फिर चाहे वो किसी पद पर हों या न हों। इसलिए पूरा संगठन इस यात्रा को सफल बनाने के लिए जुटा रहेगा।

इस यात्रा के बहाने कांग्रेस राहुल गांधी को विपक्ष का सबसे बड़ा नेता साबित करना चाहती है, इसलिए इसमें इंडिया गठबंधन के नेताओं को भी बुलाया गया है। वो भी इस बात को समझते हैं इसलिए वो इस यात्रा में किस तरह शामिल होंगे, ये आने वाला समय बताएगा । वास्तव में गठबंधन के ज्यादातर नेता राहुल गांधी को अपना नेता स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, इसलिए वो यात्रा से दूरी बना सकते हैं, जैसे पिछली बार किया गया था। ये गठबंधन को कमजोर करने वाली बात होगी कि उसके सबसे बड़े दल की यात्रा सहयोगी दल के राज्य से निकले और वो बहाना बनाकर उसका बॉयकॉट कर दें । इस तरह से देखा जाये तो यह यात्रा इंडिया गठबंधन के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकती है । राहुल गांधी ने इस यात्रा के लिये गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ कोई विचार-विमर्श नहीं किया है, इसलिये भी उनसे ज्यादा सहयोग की उम्मीद कांग्रेस को नहीं करनी चाहिए ।

इस यात्रा की दूसरी समस्या यह है कि यह जिन राज्यों से गुजरने वाली है, वहां कांग्रेस की पिछले चुनावों में हालत बेहद खराब थी । इन राज्यों की 350 से ज्यादा सीटों में से कांग्रेस को मुश्किल से 14 सीटें ही हासिल हुई थी । देखा जाये तो कांग्रेस को इन राज्यों के लिए विशेष रणनीति बनाकर चुनाव प्रचार करने की कोशिश करनी चाहिए थी लेकिन कांग्रेस सारी ताकत यात्रा में झोंक देने वाली है । बेशक यात्रा के बहाने कांग्रेस कुछ जगहों पर भीड़ जुटा ले लेकिन यात्रा के माध्यम से वोट जुटाना संभव नहीं है ।

इस यात्रा की तीसरी समस्या यह है कि इस यात्रा के दौरान ही श्रीराम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम हो रहा है जिसके कारण भारत का पूरा हिन्दू समाज राममय हो गया है । वो भगवान राम के अलावा कुछ और बात करना ही नहीं चाहता, जिसके कारण वो यात्रा की ओर ध्यान देगा, इसमें भी मुझे संदेह है । एक समस्या मीडिया को लेकर भी है, वो राम मंदिर के मुद्दे के अलावा किसी और मुद्दे पर बात करने को तैयार नहीं है ।

22 जनवरी के बाद भी यह मुद्दा खत्म होने वाला नहीं है, इसलिए राहुल की यात्रा को समुचित मीडिया कवरेज मिलना भी संदेहास्पद है । इस तरह से देखा जाये तो इस यात्रा में कांग्रेस द्वारा खर्च किये जाने वाले पैसे, समय और संसाधन से समुचित परिणाम हासिल करना मुश्किल दिखाई दे रहा है । इस यात्रा के कारण कांग्रेस को चुनावी तैयारियों के लिये बहुत कम समय मिलेगा । राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा भी इस यात्रा के लिए नुकसानदायक साबित होने वाली है, इसमें एक खतरा यह भी है कि इस कार्यक्रम के दौरान यात्रा करने के कांग्रेस राम मंदिर विरोधी दिखाई दे रही है ।

वास्तव में कांग्रेस इस यात्रा के बहाने राहुल को विपक्ष का नेता बनाना चाहती है लेकिन राहुल कांग्रेस के भी नेता नहीं बन पा रहे हैं । अभी यह भी देखना बाकी है कि जब यात्रा सहयोगी दलों द्वारा शासित राज्यों से गुजरेगी तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी ? अंत में इतना कह सकता हूं कि बेशक यात्रा से फायदा होगा लेकिन जो नुकसान होगा, वो होने वाले फायदे से बहुत कम होगा । इसका अहसास कांग्रेस के नेताओं को 2024 के लोकसभा चुनावों में लग जायेगा।[ यह लेखक के निजी विचार है, संपादक की सहमति ज़रूरी नहीं ]
-राजेश कुमार पासी

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