Tuesday, April 1, 2025

रोम में आग लगी और नीरू बंसी बजा रहा… मणिपुर अशांत, शांति की तलाश में प्रधान नौकर

जब कोई नेता पार्टी में एकाधिकार और शासक बहुमत में होता हैं तब वह नृशंस हो जाता हैं। प्रभुता पाय मद जो आय।
मणिपुर प्रांत लगभग 50 दिनों से जल रहा हैं वहां दिन रात खून खराबा हो रहा हैं। सौ से अधिक लोग मर चुके हैं। हजारों घायल हो चुके हैं लगभग 60 हज़ार परिवार पलायन कर चुके हैं, वहां के पुलिस स्टेशन से 4 हज़ार से अधिक राइफल लूट लिए गए या लुटा दिए गए।
दिन रात पहाड़ी और मैदानी नागरिकों के बीच जातीय संघर्ष हैं और म्यांमार के सीमा जो की तस्करी और अवैध ड्रग का केंद्र हैं जिसका बजट वहां की राज्य सरकार से दुगना हैं। वहां पर चीनी नागरिकों का पूरा हस्तक्षेप हैं और वहां पर वर्तमान में कोई कानून व्यवस्था नहीं हैं। वहां के केंद्रीय मंत्री, राज्य सरकार के मंत्री, विधायकों के घर जलाये जा रहे हैं। पुलिस अपनी अपनी जाती के लोगों को संरक्षण दे रही हैं। वहां पर पदस्थ सेना के हाथ बंधे हैं। विधायकों का प्रतिनिधिमंडल दिल्ली में हैं और विपक्षी नेताओ द्वारा विगत 10 दिनों से प्रधान नौकर से मिलकर सभी दलीय मीटिंग करना चाह रहे हैं पर हमारे प्रधान नौकर को समय नहीं हैं किसी से मिलने और बात करने की।
देश में गृहमंत्री को दौरा भी निष्प्रभावी रहा। और दिन रात स्थिति अनियंत्रित होती जा रही हैं और राज्य सरकार पंगु हो चुकी हैं और केंद्र सरकार कोई कठोर और प्रभावी कदम नहीं उठा पा रही हैं और न वहां राष्ट्रपति शासन लगा पा रही हैं। वर्तमान में वहां का स्थानीय प्रशासन को कार्य मुक्त कर पूरा प्रदेश मिलिट्री के हवाले कर देना चाहिए।
आज वहां कोई विपक्ष की सरकार होती तो अभी तक राष्ट्रपति लगा देते और उस सरकार की निंदा कर अनेको आरोप लगा देते पर केंद्र सरकार चुप हैं इसीलिए कि वहां डबल इंजन की सरकार असफल हो चुकी हैं।
हमारे प्रधान नौकर यूक्रेन रूस की समस्यायों के निपटान के प्रति जागरूक हैं कारण उन्हें शांति दूत कहकर नोबल शांति पुरुस्कार मिले जो हमारे लिए गौरव की बात हैं पर अपने खुद के देश की विकट समस्या निपटने या निपटाने न समय हैं और न कुछ बोल पा रहे हैं।
हमारे देश की पूर्वी उत्तरी सीमा जिसमे सेवन सिस्टर्स कहा जाता हैं वे बहुत संवेदनशील सीमाओं के राज्य हैं और उन पर विदेशी ताकतें बहुत निगाह रखती हैं, मणिपुर की आग की आंच अन्य प्रांतों में भी आ सकती हैं। वहां के राज्यपाल को हटाकर कोई सेना का राज्यपाल बनाकर राष्ट्रपति शासन लगाकर स्थिति का निराकरण करे और शांति वार्ता के लिए सम्बंधित लोगों को बैठाकर बात कर शांति स्थापित की जाय।
(विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
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