Tuesday, April 23, 2024

विधि का विधान

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कर्म का सिद्धान्त यही है कि जो कर्म के फल का कारण बनता है, उसे ही उसका फल भोगना पड़ता है। वह चाहे सौ परदों में जाकर छिप जाए, उसे किसी तरह की कोई राहत नहीं मिलती। यही ईश्वरीय न्याय है अथवा विधि का विधान है, जिसकी अनुपालना हर जीव को करनी पड़ती है।

कर्म करने के लिए जीव स्वतंत्र है, परन्तु उसके फल के भोग में नहीं। हर जीव को अपने सुकर्मों अथवा दुष्कर्मों का मधुर या कठोर दण्ड भुगतना ही पड़ता है। उसके लिए उसकी मर्जी नहीं पूछी जाती।

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यहाँ एक उदाहरण लेते हैं। हमारे आसपास बहुत से फलों के पेड़ लगे रहते हैं। उन मीठे फलों को हमारी आँख पेड़ पर लगा हुआ देखती है। उन्हें देखकर, लालचवश खाने की इच्छा हो जाना स्वाभाविक बात होती है। समस्या यह है कि आँख तो फल तोड़कर खा नहीं सकती। इसलिए पैर तेजी से चलते हुए उस पेड़ के पास फल तोडऩे के लिए पहुँच जाते हैं।

अब यहाँ दूसरी समस्या आ जाती है, वह यह है कि पैर तो फल तोड़ नहीं सकते इसलिए हाथों आगे बढ़कर मधुर फल तोड़ते हैं और मुँह उन फलों को बहुत स्वाद लेकर खाता है। इस तरह वे सभी फल पेट में चले जाते हैं।

अब देखने और समझने वाली बात यह है कि जिसने फल देखा, वह फल तोडऩे गया नहीं। जो फल तोडऩे की कामना कर रहा था, वह गया पर उसने फल तोड़ा नही। जिसने फल तोड़ा, उसने उसे खाया नही और जिसने फल खाया उसने उसे अपने पास रखा नहीं क्योंकि वह तो उसी पेट में चला गया था।

अब यहाँ एक नई बात होती है। उन पेड़ों की रखवाली करने वाले माली ने जब यह दृृश्य देखा तो उसे बहुत क्र ोध आया। वह फल तोडऩे वाले की पीठ पर डण्डे बरसने लगा। डण्डे उसकी पीठ पर पड़े जिसकी कोई गलती नहीं थी लेकिन जब डण्डे पीठ पर पड़े तब आँसू उसी आँख में आए, जिसने सबसे पहले मीठे फलों को देखा और बिना मालिक से पूछे तोड़कर खाने की इच्छा व्यक्त की थी।

यह अपने आप में कर्म के फल का उदाहरण है। मनुष्य दूसरों की वस्तुओं पर नजर रखता है, उन्हें किसी भी तरह से पा लेना चाहता है। जब उस किए गए कर्म का फल भुगतने का समय आता है तो असहनीय कष्ट होता है।

एक बात स्पष्ट करना चाहती हूँ कि हम फूँक मारकर हम दिए को बुझा सकते है परन्तु अगरबत्ती को नहीं। इसका कारण यह है कि जो महकता है उसे कोई नहीं बुझा सकता। जो जलता है, वह स्वयं ही बुझ जाता है। इस प्रकार कर्म के पास न कागज है, न कोई पोथी-पत्र है, फिर भी वह सारे जगत का हिसाब-किताब रखता है। उसमें किसी तरह की कोई चूक नहीं होती। सब कुछ न्याय के अनुसार चलता रहता है।

जिस व्यक्ति को भगवान और उनके न्याय पर अटूट विश्वास होता है, उसे संसार की कोई भी, कैसी भी स्थिति बेचौन नही कर सकती। वह हर परिस्थिति में यही सोचता है कि इसमें भी ईश्वर मेरे लिए कुछ बेहतर ही कर रहा है। यह भाव सदा अपने मन में अच्छी तरह बसा लेना चाहिए कि ईश्वर तो हमारे बिना भी ईश्वर ही है, परन्तु हमारा ईश्वर के बिना कुछ भी अस्तित्व नहीं है। हम उसकी सत्ता को चुनौती देने की जरा-सी भी सामर्थ्य नहीं रखते।

नकारात्मक विचारों को उसी समय अपने मन से निकल देना चाहिए, जिस क्षण वे हमारे मन-मस्तिष्क में हलचल उत्पन्न करते हैं। यही वे पल होते हैं जब मनुष्य पूरी तरह कमजोर पड़ जाता है। सकारात्मक विचारों को यत्नपूर्वक अपने मन में स्थान देना चाहिए। बीते हुए कल के लिए ईश्वर का धन्यवाद करना चहिए और आने वाले कल के लिए ईश्वर पर पूरा विश्वास रखना चाहिए। आज का दिन सबके लिए खुशियाँ लेकर आए, सदा ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए।

जो समय बीत गया, जो करणीय-अकरणीय कर्म हम कर चुके, उन्हें बदल नहीं सकते। जब मनुष्य चेत जाए, तब से उसे अपने कर्मों की और ध्यान देना चाहिए। प्रयास यही करना चाहिए कि भूल से भी कोई दुष्कृत्य अपने से न होने पाए। यदि मनुष्य थोड़ी-सी सावधानी बरत ले तो उसका इहलोक और परलोक दोनों ही निश्चित रूप से सुधर सकते हैं।
–  चन्द्र प्रभा सूद

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