Saturday, May 11, 2024

व्यंग्य: भगवान बचाये पड़ोसियों से…

मुज़फ्फर नगर लोकसभा सीट से आप किसे सांसद चुनना चाहते हैं |
भाई से बढ़कर दुश्मन नहीं, पड़ोसी से बढ़कर मित्र नहीं
यह समीकरण अब फिट नहीं बैठता। वे पड़ोसी जो कभी एक थाली में बैठकर खाना खाते थे, अब एक-दूसरे की थाली में कर रहे हैं छेद, क्योंकि वे जानते हैं एक-दूसरे के भेद। छद्मवेशी शुभचिंतक पड़ोसी, गहरे गड्ढे खोद रहे हैं, अपने सुखी पड़ोसी का सुख दफनाने। मोहल्ले में गैंग बन गई है, गेंग में विचार-विमर्श हो रहा है, पड़ोसियों की तकलीफें बढ़ाने।
अपने पड़ोसिन- अरे भाई! आपकी बाजूवाली नहीं वरन् ‘पड़ोसन फिल्म की बात कर रहा हूं। दो पड़ोसी एक पड़ोसिन को पटाने के लिए क्या-क्या करते हैं? देखा होगा- फिल्म में।
किन्तु समाज में तो इससे भी भयावह होता है जब कोई ‘सज्जन कुमार’ चार बच्चों की मां को पहले बहन कहता है। बाद में बीवी बना लेता है। तब पति कहते फिरता है दोस्त-दोस्त न रहा…। हकीकत यह है कि निकृष्ट विचारधारा वाले पड़ोसी सम्पर्क स्थापित कर जघन्यतम कार्य कर बैठते हैं। इसलिए घर में बहुत अंदर तक जाने की छूट चाहे जिस पड़ोसी को नहीं देनी चाहिए। क्योंकि जहां विश्वास होता है, वहीं विश्वासघात होता है। कहा जाता है विश्वास फलदायकम्। अब विश्वास फल नहीं देता अपितु फालतू की उलझनें पैदा कर देता है। जैसे ‘एक सज्जन कुमार’ का लोगों ने विश्वास किया। उन्होंने बेरोजगार लड़कों को नौकरी दिलाने का ख्वाब दिखा- काम डाला और नोट बटोरकर चंपत हो गए।
‘निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छबाय’ बाबा कबीर का यह सोच अब अप्रासंगिक हो गया है। अब तो निंदक का सिर फोडऩे लोग लट्ठ लिये घूम रहे हैं। डालडा युग में अब निंदक की नहीं चमचों की जरूरत है।
पहले कहते थे कि पड़ोसी के यहां चूल्हा जला कि नहीं पहले देख लो फिर खाना खाओ- यदि पड़ोसी भूखा है तो पहले उसे खिलाओ फिर खुद खाओ। अब उल्टा हो रहा है- भूखे पड़ोसी को भरे पेटवाला खा जाने वाली नजरों से देख रहा है।
एक देशी कहावत है- आदमी जाने बसे- घोड़ा जाने कसे।
व्यक्ति भला है कि बुरा यह उसके पास रहने पर ही पता चलता है। जब प्यार की प्यारी-प्यारी मुलाकातों का सिलसिला शुरू होता है तब प्रेमी-प्रेमिका बढिय़ा-बढिय़ा, अच्छे से अच्छे कपड़े, गहने मेकअप धारण करते हुए परस्पर एक-दूसरे को आकर्षित करना चाहते हैं। मोहब्बत में गरीबी आड़े नहीं आने देते। गरीब से गरीब प्रेमी भी टाटा-बिड़ला की औलाद समझ में आता है। क्योंकि प्रेमिका को नये-नये पिक्चर और महंगी से महंगी होटल ले जाता है। कई बार मित्रों के कपड़े पहनकर शान बतलाता है। प्रेमी-प्रेमिका यदि पड़ोसी हैं तो मोहल्ले वालों के लिए बिना पैसे की फिल्म देखने का इंतजाम हो जाता है।
जैसा कि सब जानते हैं जीभ जन्म के साथ और दांत बाद में आते हैं। कठोर और कर्कश होने के कारण दांत जल्दी साथ छोड़ देते हैं। इन्हीं की भांति कठोर और उग्र स्वभाव के पड़ोसी सदैव नये मकान की तलाश में भटकते ही रहते हैं। जबकि सहयोगी/विनम्र स्वभाव के पड़ोसी सबके सुख-दु:ख में सहयोग करते हुए पीढ़ी-दर-पीढ़ी संबंध निभाते हुए एक ही जगह बने रहते हैं- प्रतिष्ठित होते हैं।
जबसे फ्लेट संस्कृति का प्रचार-प्रसार हुआ, लोग खुद के बनाये अपने-अपने दड़बों में कैद हो गए है। उनका सुख, उनका दु:ख एक कमरे के अंदर बंद है, जिसमें उनके बुजुर्ग मां-बाप के लिए भी जगह नहीं। ऊंचे और बड़े मकानों में रहने वाले नीचे और छोटे दिल के हो गये। सोच में विस्तार नहीं संकीर्णता आई है। अच्छे पड़ोस की भावना डगमगाई है। एक डॉक्टर जो क्लीनिक में मरीज देखने की सौ रुपए फीस लेता है, पड़ोस में इमरजेंसी होने पर, दो सौ रुपये फीस मांगता है। इसलिए कि दूसरी बार पड़ोसी उन्हें आधी रात में बुलाने, उठाने न आए और दूसरी बात डॉक्टर बड़े और फीस तगड़ी है, पड़ोसी भी समझ जाएं और गरीब बीमार रात में घंटी न बजाएं।
किसी बड़े अधिकारी के पड़ोसी होने का भी बड़ा फायदा है। गाहे-बगाहे सरकारी जीप में पिकनिक का आनंद-दीवाली में मुक्त पटाखों/उपहारों का जुगाड़। बस अफसर को खुश रखने की चमचेबाजी भर आनी चाहिए। इसी क्रम में प्रसिद्ध अथवा खास व्यक्ति के पड़ोस में रहने का भी लाभ लिया जा सकता है।
इसके विपरीत पड़ोसी यदि दुष्कर्मी है तो सद्कर्मी पड़ोसी को पसीना आता है क्योंकि दुष्कर्मी पड़ोसी के यहां हर किस्म के जरायम पेशा लोगों का मेला लगा रहता है। पुलिस वाले मौके बेमौके या फिर हफ्ते के हफ्ते पैसा लेने पहुंचकर दुष्कर्मी की इज्जत बढ़ाते हैं और शिकायत करने वाले को उल्टा धमकाते हैं।
आपने ध्यान दिया होगा जब भी किसी भौगोलिक सीमांकन की बात आती है तो नक्शा बनाया जाता है और नक्शे में पड़ोसी-ग्राम-नगर-जिला-संभाग-प्रांत-देश आदि उल्लेखित होता है। चालाक पड़ोसी देश, लाखों रुपये खर्च कर फर्जी नक्शे बनवाते हैं और दूसरे देश का भू-भाग अपने हिस्से में दर्शाते हैं। नक्शे की आड़ में युद्ध करने लग जाते हैं। अच्छा है विश्व में पाकिस्तान एक ही है यदि दो-चार पाकिस्तान हो जाते तो विश्व शांति खतरे में पड़ जाती। पेश है पाकिस्तानी मानसिकता से जुड़े पड़ोसी की कथा-दो पड़ोसी थे दोनों में बड़ा अपनापन-भाईचारा-पारिवारिक संबंध। जरूरत पडऩे पर एक-दूसरे से उधारी भी लेकर अपना काम चलाते। शुरू में उधारी लेन-देन कम रहा। कालांतर में व्यवहार बनते गए- उधारी का लेन-देन बढ़ता गया। एक बार जब राशि काफी हो गई तो अगले ने मुड़कर देखना और उधारी वापस करने का नाम लेना ही बंद कर दिया। एक बार ये दोनों पड़ोसी मोहल्ले के अन्य पड़ोसियों के साथ पिकनिक पर गए। पिकनिक स्थान- शहर से दूर, निर्जन किंतु मनोरम था, कब दिन ढल गया पता ही नहीं चला। अंधेरा तेजी से घिरने लगा।
अचानक पिकनिक स्थल पर दस्यु गैंग ने हमला बोल दिया। सब हक्का-बक्का। हंसी-खुशी का माहौल गमगीन होने लगा। एक बकबकिया पड़ोसी जो बड़ी देर से अपनी-अपनी हांक रहा था दूसरों को बोलने का अवसर ही नहीं दे रहा था चुप न रहने की बीमारी से ग्रस्त था। जैसे ही उसने- मुंह खोला- ‘दाऊजी बोला कि दस्यु सरदार ने एक जोरदार घूंसा उसके मुंह पर रसीद करते हुए कहा- जिसके पास जो भी नकदी, घड़ी, चैन, अंगूठी आदि हैं तत्काल निकाल दें, किसी ने भी चालाकी दिखाई तो जान से हाथ धो बैठेगा। सब अपना-अपना सामान निकालने लगे। वह पड़ोसी जो कई दिनों से अपने दूसरे पड़ोसी से बीस हजार लेकर वापस देने के मामले में चुप्पी साध गया था आज डाकुओं को उपस्थित देख मित्र से हाथ जोड़ विनती कर रहा था। मिन्नतें कर रहा था। बार-बार, रिरिया-रिरिया के कहे जा रहा था- भैया पैसा ले लो, भैया पैसा ले लो।
कई पड़ोसिन ऐसी हैं जो मंथरा का काम करती हैं। जब तक दो-चार को लड़ा नहीं दें, उनकी खाई रोटी हजम नहीं होती।
मेरे एक मित्र कम पड़ोसी हैं। उन्हें अपनी फितरत पर बड़ा नाज है। उनके बारे में कुछ भी कहना (ना) जायज है। यूं तो वे शहर के जाने-माने डॉक्टर हैं पर डॉक्टरी पेशा छोड़ संसार भर के पेशों में उनका मन लगता है। यदि उन्हें अपना काम बनाना है तो फौरन गधे को बाप बनाते हैं नहीं तो बाप को भी गरियाते हैं। पैसे को वे बाप और बाप को अक्ल के मामले में अपना लड़का समझते हैं। वे गीतकार हैं, संगीतकार हैं, साहित्यकार हैं, समाजसेवी हैं, महिलासेवी हैं। स्वजातीय ब्याहता को छोड़कर अंतर्जातीय प्रेम विवाह किया और पेशेंट को पत्नी बना लिया। उनकी इस हरकत से बुजुर्ग बीमार, शादीशुदा महिलाओं तक ने उनकी डिस्पेंसरी में जाना बंद कर दिया। वे संगीत चिकित्सा के क्षेत्र में नये प्रयोग कर रहे हैं- खूब तेज बाजा बजाकर पड़ोसियों को परेशान कर रहे हैं। ये हैं एम.बी. बी.एस. एम.डी. पर इन्हें पसंद हैं लोकगीत।
इन्हें भी 2 साल से एक हिट लोकगीत की तलाश है। इनकी दो कारें हैं- एक नई एक पुरानी। इसे ‘स्टेट्स सिम्बल’ मानते हैं- जिसके पास कार नहीं, उसे आदमी नहीं जानवर मानते हैं। पड़ोसी के दरवाजे के ठीक सामने कार खड़ी कर पड़ोसी का आने-जाने का मार्ग तथा उनके बच्चों का खेलना-कूदना बंद कर देना अपनी शान समझते हैं। दो-दो कार का मालिक दड़बानुमा किराये के मकान में रहता है ऊपरी मंजिल में। तभी तो उनके कार प्रेम से परेशान हैं पड़ोसी।
पड़ोस में एक महिला अकेली रहती है। ब्लड प्रेशर एवं हार्ट की मरीज है। इन्हें नींद के लिए गोली लेनी पड़ती हैं, बड़ी मुश्किल से नींद आती है। डॉक्टर जब डिस्पेंसरी से घर वापस आता है तो पुरानी कार का इंजन सही रखने तथा गाड़ी में मूवमेंट बनाए रखने आधी रात में खूब रेस देकर गाड़ी चालू करता है। मिस फायरिंग के कारण कई बार खूब जोर से फटाफट-फटाफट की आवाज होती है। रात के सन्नाटे में गोली चलने जैसा आभास होता है, पड़ोस की छोड़ो पूरा मोहल्ला परेशान होता है, किन्तु डॉक्टर ठहरा मोटी चमड़ी वाला उसे कुछ नहीं होता है। डॉक्टर बदसलूकी करे तो कुछ नहीं, किन्तु अगर किसी ने जोर से बात कर ली तो फौरन थाने भागता है। डॉक्टर फोकट प्रचार का कोई मौका नहीं छोड़ते।
अभिमन्यु जैन- विभूति फीचर्स

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