पटना। महावीर मंदिर न्यास के सचिव और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी आर्चाय किशोर कुणाल का आज सुबह हृदयगति रुक जाने से निधन हो गया। वह 74 वर्ष के थे।
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कुणाल को रविवार की सुबह कार्डियक अरेस्ट हुआ। इसके बाद तुरंत उन्हें महावीर वत्सला अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। कुणाल का जन्म 10 अगस्त 1950 को हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई मुजफ्फरपुर जिले के बरुराज गांव से की। उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से इतिहास और संस्कृत में स्नानक की पढ़ाई पूरी की। वह1972 में गुजरात कैडर से भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी बने और आनंद के पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात हुए। वह 1978 में अहमदाबाद के पुलिस उपायुक्त बने। 1983 में उन्हें पदोन्नति मिली और वे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर पटना में तैनात हुए।
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कुणाल ने वर्ष 1990 में गृह मंत्रालय में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी के पद पर काम किया। एक आईपीएस अधिकारी के रूप में कुणाल पहले से ही धार्मिक कार्यों में शामिल थे। पुलिस से सेवानिवृत होने के बाद उन्होंने केएसडी संस्कृत यूनिवर्सिटी दरभंगा के कुलपति का पद संभाला। वर्ष 2004 तक वे इस पद पर रहे। इसके बाद वह बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के प्रशासक बने और प्रचलित जातिवादी धार्मिक प्रथाओं में सुधार की शुरुआत की। आईपीएस की सेवा से सेवानिवृत होने के बाद आचार्य किशोर कुणाल सामाजिक कार्यों से जुड़ गए। फिलहाल वह बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष और पटना के चर्चित महावीर मन्दिर न्यास के सचिव भी थे।
महावीर मंदिर न्यास बोर्ड पटना में कई स्कूलों और कैंसर अस्पताल का संचालन करती है। आचार्य किशोर कुणाल राजधानी पटना में ज्ञान निकेतन जैसे चर्चित स्कूल के संस्थापक भी थे। जब केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार थी तो उस समय कुणाल को केंद्र सरकार ने विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के बीच मध्यस्थता के लिए विशेष अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया था। कुणाल बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी के समधि भी थे। अशोक चौधरी की बेटी शांभवी की शादी किशोर कुणाल के बेटे से हुई है।
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वर्ष 2008 में कुणाल को सामाजिक सेवाओं में उनके योगदान के लिए भगवान महावीर पुरस्कार मिला। भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया।यह पुरस्कार भगवान महावीर फाउंडेशन, चेन्नई द्वारा स्थापित किया गया है। आचार्य कुणाल यह पुरस्कार पाने वाले बिहार-झारखंड के पहले व्यक्ति हैं। उनका चयन भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएन वेंकटचलैया की अध्यक्षता वाली जूरी ने किया था।