लखनऊ। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने 2025 के पद्म पुरस्कारों की घोषणा की, जिसमें 19 प्रमुख हस्तियों को पद्म भूषण अवार्ड से नवाजा गया। इनमें एक नाम साध्वी ऋतंभरा का भी है, जिन्हें उनके सामाजिक कार्यों के लिए यह सम्मान मिला। साध्वी ऋतंभरा का नाम विशेष रूप से राम मंदिर आंदोलन से जुड़ा हुआ है, जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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साध्वी ऋतंभरा का जन्म पंजाब के लुधियाना में हुआ था और वे दीदी मां के नाम से भी जानी जाती हैं। वे एक प्रसिद्ध कथावाचक और धार्मिक प्रचारक हैं। राम मंदिर आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी के कारण उनकी पहचान बनी और उन्हें समाजिक कार्यों में योगदान के लिए यह सम्मान मिला है।
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हालांकि, साध्वी ऋतंभरा को पद्म भूषण मिलते ही विवाद शुरू हो गया। सोशल मीडिया पर उनके सम्मान को लेकर तीखी बहस हो रही है। कुछ वरिष्ठ वकील, पत्रकार और समाजवादी वर्ग के लोग इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, “मोदी सरकार के कार्यकाल में पद्म पुरस्कार अब राजनीतिक तमाशा बन गए हैं।” उन्होंने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे सरकार की पक्षपाती सोच का उदाहरण बताया।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक दयाशंकर मिश्रा ने भी ट्वीट कर कहा, “बीजेपी प्रचारक साध्वी ऋतंभरा को पद्म भूषण संविधान के प्रति सरकार की सोच-समझ का स्पष्ट उदाहरण है।”
इसके अतिरिक्त, पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने भी इस सम्मान पर सवाल उठाते हुए ट्वीट किया, “साध्वी ऋतंभरा को पद्म भूषण दिया गया है, जिन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस में सक्रिय रूप से भाग लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक आपराधिक कृत्य बताया था।”
पत्रकार विजैता सिंह ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी और लिखा, “साध्वी ऋतंभरा को ‘सामाजिक कार्य’ श्रेणी में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है, हालांकि उन्हें बाबरी मस्जिद विध्वंस में भाग लेने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था और उनके खिलाफ सीबीआई ने आपराधिक मामले में आरोप भी लगाए थे।”
इस पुरस्कार की घोषणा के बाद, सोशल मीडिया पर लोग दो धड़ों में बंट गए हैं। कुछ लोग इसे एक उचित सम्मान मानते हैं, जबकि अन्य इसे राजनीति से प्रेरित मानते हैं। विशेष रूप से राम मंदिर आंदोलन और बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़ी साध्वी ऋतंभरा की भूमिका के कारण इस पुरस्कार पर विवाद और भी बढ़ गया है।