Sunday, November 10, 2024

शिव हिमालय और गंगा

शिव का स्थान सर्वोच्च है। हिमालय पिता की भांति हमारी रक्षा करता है। गंगा माता के समान हमारा पालन-पोषण करती है। शिव का निवास स्थान हिमालय की कैलाश-मानसरोवर पर्वत श्रृंखलाएं मानी जाती हैं। वेदों तथा पुराणों में जगह-जगह उनका उल्लेख मिलता है। पारसी धर्म समुदाय में उन्हें अजुरमज्द नाम से पूजा जाता है। किंतु कहीं भी उनके आदि तथा अन्त का उल्लेख नहीं मिलता। इसलिए उन्हें आदिदेव माना जाता है। कैलाश पर्वतीय क्षेत्र साधारण मनुष्यों के लिए अगम्य समझा जाता है। कनेर के वृक्षों के अतिरिक्त यहां अन्य कोई वनस्पति नहीं पाई जाती। जिसके फूलों की मालाएं ही शिव का आभूषण हैं। वायु ही उनका आहार है। वे इस एकान्त, निर्जन स्थान, पर निरन्तर समाधिस्थ रहकर पूरे संसार की गतिविधियों का अवलोकन करते रहते हैं। मानव जाति के समक्ष आने वाली कठिनाइयों के निराकरण तथा मानव जाति के कल्याण के लिए विविध साधनों की खोज में लगे रहते हैं। मानव कल्याण के लिए किये गये उनके कार्यो की कोई सीमा नहीं है।
(1) शिव ने ही सर्वप्रथम ब्रह्मांड की उत्पति के कारक नाद को ऊं शब्द से परिभाषित किया तथा उसकी व्याख्या कर ब्रह्मांड की उत्पति के रहस्य को समझाया। इसलिये उन्हें ओंकारेश्वर भी कहा जाता है। (2) शिव ने ही अपने अर्धनारीश्वर रूप के द्वारा एक समान मानव प्रजाति की उत्पत्ति के रहस्य को प्रकट किया। (3) उन्होंने ही शरीर में स्थित वायु तत्व के ग्यारह रूपों की पहचान कर उन्हें ‘रूद्र का नाम दिया। इन सभी ग्यारह रूपों को नियन्त्रित करने की अष्टांग योग पद्धति को साधारण मानव जाति के लिए भी सुलभ कराई। पूर्व में यह योग साधना पद्धति कतिपय ऋषियों तक ही सीमित थी। इस पद्धति की सहायता से साधारण मानव भी दीर्घायु के साथ कई सिद्धियां प्राप्त कर सकता है। शिव इसी कारण योगेश्वर, एकादश रूद्र, मृत्युंजय अथवा महाकाल आदि नामों से पुकारे जाते हैं। (4) शिव ने ही अपने वाद्य डमरू के दायें भाग से संस्कृत भाषा की तथा बायें भाग से तमिल भाषा की उत्पत्ति की। तमिल भाषा से ही दक्षिण की अन्य कन्नड, मलयालम तथा तेलगु भाषाओं की उत्पति हुई। शिव ने उत्तर तथा दक्षिण भारत के मध्य भाषायी सम्पर्क स्थापित करने के लिए महर्षि अगस्त्य को संस्कृत तथा तमिल भाषाओं का ज्ञान दिया। महर्षि अगस्त्य ने ‘अगस्त्यमू नामक प्रथम तमिल व्याकरण की रचना कर-उसके माध्यम से उत्तर को दक्षिण से जोडऩे का दुरूह काम पूरा किया। (5) शिव ने ही डमरू से ध्वनित हुए अ से ज्ञ तक के पचास वणों को आकार प्रदान कर देवनागरी लिपि की रचना की। जिसमें शब्दों तथा वाक्यों का बनना प्रारंभ हुआ। (6) संगीत के सात स्वरों षड्ज  ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद (सा रे ग म प ध नि) की रचना भी शिव ने ही की थी। लयबद्ध छन्दों की रचना कर तथा लय, ताल के संयोग के हाथ-पैर, कमर, भृकुटि तथा ग्रीवा के  संचालन से नाट्य तथा नृत्यकला का आविष्कार किया। उनका नटेश्वर नाम इसीलिए पड़ा। शिव से सर्वप्रथम  कुबेर ने इस विद्या को ग्रहण किया। उन्होंने ही फिर इसे अन्य लोगों को सिखाया तथा संगीत, गायन तथा नृत्य में श्रेष्ठता के अनुसार इनका नामकरण गन्धर्व, किन्नर तथा यक्ष जातियों के रूप में किया गया।
शिव तथा शिव परिवार मानव जाति के कल्याण के लिए पूर्ण समर्पित रहता है। शिव की शक्ति (अर्धागिनी) के रूप में मां पार्वती भी अपने विविध  रूपों द्वारा मानव जाति को सुख, सौभाग्य, ऐश्वर्य प्रदान करने के साथ-साथ ऐसे दुष्टों को भी दंडित करती रहती है जो शिव से प्राप्त शक्तियों का दुरूपयोग करने लगते हैं। उनके पुत्र कार्तिकेय तथा गणेश मानव जाति के सभी विघ्नों का नाश करते हैं तथा ऋद्धि-सिद्धियों प्रदान करते हैं। गणेश सम्पूर्ण भारत में  तथा कार्तिकेय दक्षिण भारत में विभिन्न नामों से पूजे जाते हैं। प्रत्येक मांगलिक कार्य इन्हीं की प्रथम पूजा से प्रारंभ होता है।
शिव सर्वज्ञ है, सर्वव्यापी हैं तथा अविनाशी हैं। वे ही परम सत्य, पवित्र होने से परम सुंदर हैं। इसीलिए उन्हें सत्यं शिवं सुन्दरम कहा जाता है। मानव जाति के लिए अनेक कल्याणकारी विधियां प्रदान करने के कारण ही उन्हें महादेव कहा जाता है।
पावन हिमालय- हिमालय पर्वतमाला का विस्तार अफगानिस्तान में म्यांमार तक फैला हुआ है। हमारे देश का उत्तर-पूर्वी सीमान्त भाग नेफा इससे आरक्षित है। अनेक राज्य तथा उनके पड़ोस में बसे हुए नेपाल, भूटान, तथा तिब्बत (चीन) इसी पर्वतमाला में है। दुनिया की छत तिब्बत का पठार, अमृत तुल्य शुद्ध मीठे पानी की मानसरोवर झील तथा शीत मरूस्थल के नाम से विख्यात लाहौल- स्फीति घाटी (हिमाचल प्रदेश) इन्हीं पर्वतमालाओं में स्थित है। यही पर बर्फ का रेगिस्तान नाम से प्रसिद्ध रोहतांग दर्रा है। ‘याक पशु इस क्षेत्र का प्रमुख पशु है जिसे हिमालय का ऊंट अथवा जहाज भी कहते हैं। यह विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। पांच हजार मीटर ऊंचाई वाले बर्फीले पठारों में भी मखमली घास के मैदान मिलना  इस क्षेत्र की अपनी विशेषता है। हिमालय पर्वत में बहुमूल्य खनिजों, स्वर्ण, रत्न, मोती, चांदी तथा लोहा, तांबा,प्राकृतिक गैस कोयला- यूरेनियम, आदि के अक्षय भंडार हैं। यहां अनेक दुर्लभ वन्य जीव प्रजातियों का निवास  हैं जो अन्यत्र बहुत कम मिलती है। इनमें कस्तूरी मृग, भूरा भालू, हिमालयन मुर्गा, चकोर, कोकिला, थार, दुर्लभ तितलियां प्रमुख हैं। हमारे देश की अधिकांश प्रमुख नदियां सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना, सतलुज, व्यास, रावी, चिनाव, झेलम तथा अन्य हिमालय पर्वत से ही निकलती है।
हिमालय ही मानसूनी हवाओं को रोक कर उनसे अमृत तुल्य वर्षा कराता है। हमें शीत हवाओं से बचाता है तथा सजग प्रहरी की भांति हमारी रक्षा करता है। यही विश्व प्रसिद्ध ”फूलों की घाटी नाम से प्रसिद्ध नैसर्गिक बगीचा है। जिसमें दुर्लभ प्रजातियों के फूल पूरे वर्ष खिले रहते हैं। अठारह वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली इस घाटी में सहस्त्रपर्णों, शंख पुष्पी, रोहिणी, रूद्रवती, सौवर्चला, प्रश्निपणी, ब्राह्मी, वत्सनामा (मीठा जहर), ब्रह्मकमल, पदम, कुन्द,ब्रह्म पुष्कर, संजीवनी जैसी वनौषधियां मिलती हैं। संसार में ऐसा कोई रोग नहीं है जो इन वनौषधियों से ठीक न हो सके।
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र सदा से ही अनेक आदिम जनजातियों का निवास स्थान रहा है। पौराणिक पृथु, पठवा, पकथा, बलहन, कठ, नाग, गन्धर्व, किन्नर, राक्षस, देव (ऋषि समुदाय)  किरात, कोल, असुर पिशाच आदि जातियां हिमालय की पर्वत चोटियों पर ही रहा करती थी। कालान्तर में विदेशी जातियां के आगमन से अधिकांश मूल जातियां विलुप्त हो गईं। बुरांश का फूल हिमालय का श्रंगार कहलाता है। जो नेपाल का राष्ट्रीय फूल है। इसके शरबत तथा अन्य जड़ी बूटियों के रसायनों को मिलाकर ही प्राचीन नारी जाति ने चिर युवा रहने के लिए अमृत तुल्य  ‘सुधा का निर्माण किया था। जिसके कारण ही देव तथा नारी जाति में प्रगाढ़ संबंध स्थापित हुए थे।
संसार की प्रमुख मानव सभ्यताओं का विकास हिमालय क्षेत्र मेें ही हुआ था। यहीं से विश्व के अन्य क्षेत्रों में ज्ञान रूपी प्रकाश फैला था इसीलिए भारत को जगतगुरू कहा जाता था।
रामायण कथा तथा पुराणादि  मेंं वर्णित अनेक कथा प्रसंग हिमालय से जुड़े हुए हैं यथा (1) हनुमान जी का गन्धमादन पर्वत से संजीवनी बूटी लेकर जाना। (2) राजा भागीरथ द्वारा गंगा नदी लाना (3) वैदिक ऋषियों के आश्रम जहां उन्होंने वेदों की रचना तथा उनका संकलन किया था। (4) देव जाति (ऋषि समाज) के प्रमुख इन्द्र द्वारा इन्द्रपुरी का निर्माण करना जो (संभवत या वर्तमान हेमकुंड तथा अन्य हिमालय की सप्त चोटियों के मध्य पन्द्रह हजार फीट  विभिन्न रूपों से संबंधित शक्ति पीठों में अधिकांश हिमालय क्षेत्र में ही स्थित है। जो वर्तमान में बहुसंख्यक हिन्दू समाज के आस्था के केन्द्र बने हुए हैं। जिनमें प्रमुख है पशुपतिनाथ (नेपाल), अमरनाथ, केदारनाथ, नागेश्वर (जागेश्वर), बद्रीनाथ, तुंगनाथ, पंचेश्वर, विमांदेश्वर तथा जगदम्बा शक्तिपीठ में वैष्णों देवी/चामुंडा देवी/ अम्बा देवी/ ज्वाला देवी/ नैना देवी/ नन्दा देवी प्रमुख हैं। कालान्तर में इस क्षेत्र में आये तीव्र भूकम्प के कारण उच्च हिम शिखरों से विशालकाय हिम शैल टूट-टूटकर लुढ़कने लगे जिससे दलदल की भांति विशाल हिम परत ने संपूर्ण क्षेत्र को ढक लिया।
पुराणों में वर्णित सभी स्थानों तथा निवास करने वाली अधिकांश जातियां का अस्तित्व सदा के लिए विलुप्त हो जाने से वर्तमान में इनका कोई साक्ष्य नहीं मिलता। किंतु आज भी हिमालय उतना ही रहस्यमय है जितना प्राचीनकाल में था।  आज यहां अनेक ऐसे दुर्लभ तथा अगम्य स्थान मौजूद हैं जहां सभ्य मानव, शायद कभी पहुंच  सके।
(5) पांडवों का वनवास का कुछ समय यहां बीता था। (6)पांडव भीम द्वारा द्रोपदी के लिए दुर्लभ प्रजाति के ब्रह्म कमल लेने-इसी क्षेत्र में आना तथा इन्द्रपुरी में प्रवेश करना। (7) यक्षराज चित्ररथ द्वारा पांडवों की खोज में आये दुर्योधनादि कौरवों को बंदी बना लेना। (8) अर्जुन का शिव से पाशुपत अस्त्र प्राप्त करना आदि।
भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक पूजनीय शिव का निवास हिमालय के कैलाश पर्वत पर ही माना जाता है। उनसे संबंधित अनेक शिवलिंग तथा मां पार्वती (भगवती/ जगदम्बा) के गंगानदी- भारतवर्ष में अनेक पवित्र नदियां हैं। किंतु उन सब से गंगा नदी का स्थान सर्वोच्च है।
सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज, रावी आदि नदियां तिब्बत के पठार से निकलती है तथा भारत में बहती हुई पाकिस्तान में चली जाती हैं।
जबकि गंगा नदी उत्तरांचल राज्य के गौमुख हिम पर्वत से निकलकर ऋषिकेश हरिद्वार होती हुई भारतवर्ष के बहुत लम्बे भू-भाग को सींचती हुई पं. बंगाल में  गंगासागर स्थान पर समुद्र में जाकर मिलती है। गंगासागर इसीलिए महातीर्थ कहलाता है। राजा भगीरथ से महाभारत के अजेय योद्धा भीष्म तक अनेक कथा प्रसंग गंगा नदी से जुड़े हुए हैं।
हमारे देश के सर्वाधिक कृषि उत्पादन क्षेत्र तथा औद्योगिक उत्पादन में अग्रणी राज्य- गंगा नदी के किनारों पर ही स्थित है।  इसमें भारतवर्ष की आधे से अधिक जनसंख्या निवास करती है। हिन्दू समाज के अधिकांश तीर्थ स्थल,पर्यटन स्थान तथा प्रमुख नगर गंगा नदी के किनारे पर ही स्थित है।
इसका पानी अमृत तुल्य तथा रोग नाशक माना जाता है। इसीलिए इसे गंगा मैया (गंगा माता) के नाम से पुकारा गया है। गंगा नदी हमारे देश की जीवन रेखा है।
मुरली मनोहर गोयल-विभूति फीचर्स

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