सभी मनुष्यों में सामाजिकता का जन्मजात भाव होता है किंतु व्यक्ति कभी कभी यह भाव अपनी व्यस्तता, परिस्थिति एवं इतर कारणों से व्यक्त नहीं कर पाता या सामाजिक भाव को दबा देता है और कन्नी काटकर निकल जाता है।
सामाजिकता सदैव सब दृष्टि से लाभदायी होती है। किसी व्यक्ति के सामाजिक होने या समाज के काम आने की इच्छा से कुछ काम करने पर वह सदैव प्रसन्न रहता है।
वह सभी चुनौतियों से निपटने में सक्षम बन जाता है। चिंतामुक्त, रोग मुक्त एवं दीर्घायु जीवन जीता है।
इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर सभी रोगों एवं परिस्थितियों से लडऩे में समर्थ होता है। कैंसर जो कई प्रकार से शरीर पर आक्र मण करता है इससे भी निपटने में समर्थ हो जाता है।
यहां समाज से तात्पर्य जो किसी भी स्तर पर गली, मोहल्ला या जाति, धर्म, सम्प्रदाय से जुड़कर इस स्तर पर कार्य करते हैं उन्हें यह लाभ मिलता है किंतु किसी स्वार्थ या राजनीति को लेकर जो सामाजिक जीवन बिताते हैं, तब यह लाभ नहीं मिलता।
वास्तव में स्वैच्छिक एवं नि:स्वार्थ भाव से किया गया सामाजिक कार्य यह लाभ दिलाता है। अतएव स्वैच्छिक एवं नि:स्वार्थ भाव से सामाजिक कार्य करें और प्रसन्न, निरोग एवं दीर्घायु जीवन बिताएं।
-सीतेश कुमार द्विवेदी