Tuesday, May 13, 2025

आत्मा ही असली परमात्मा

राम-राम रटना सुमिरण नहीं। राम का स्मरण आ जाना, परमात्मा का स्मरण जग जाना ही सुमिरण है। तो प्रभात में या सायंकाल जब आप सुमिरण के लिए बैठें, तो राम-राम मत रटिये, उससे कुछ नहीं होगा। उस समय अपनी स्मृति को जगाइये। आपकी स्मृति पर जो विस्मृति की धूल जम गई है, उस धूल को दूर कीजिए। जैसे ही विस्मृति की धूल धुलेगी आप पायेंगे कि आपकी आत्मा ही परमात्मा है।

संसार में जितने भी धर्म स्थल हैं वे सब इसलिए हैं कि वहां बैठकर आप अपने स्मरण को जगा सके। यह मानना कोरा भ्रम है कि उन्हीं चारदीवारियों में परमात्मा कैद हैं। परमात्मा तो उन चारदीवारियों से पार ब्रह्मांड के कण-कण में विद्यमान है।

मान्यताओं के तल पर जीने वाले लोग मंदिरों और मस्जिदों को लेकर झगड़ते हैं। धर्म स्थलों के नाम पर लड़ना विचित्र है, यह बुद्धिमानी नहीं है। जो धर्मस्थलों को माध्यम बनाकर लड़ते हैं वे परमात्मा के पुजारी नहीं हैं, वे अपने अहंकार के पुजारी हैं। परमात्मा पर प्रत्येक आत्मा का अधिकार है। प्रत्येक आत्मा में वह बीज रूप में विद्यमान है। इस शाश्वत सत्य को स्मरण रखिए और उस बीज को विकसित करिये।

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