Saturday, September 28, 2024

कहानी: जहां रहें खुश रहें

आसमान में अब भी बादल छाए थे। तीन-चार दिन लगातार पानी बरसता रहा। बीच में कुछ देर को आज धूप जरूर निकली थी।
घरों में बंद बच्चे बूढ़े जवान सभी कैद से छूटने का जश्न मनाने पार्क की ओर बढ़ चले। दो खूबसूरत रंग-बिरंगी चिडिय़ों का जोड़ा जाने कहां से उड़कर आया था। पार्क की बाउन्ड्रीवॉल पर बैठा चीं…चीं… करता सुहाने मौसम का अभिनंदन कर रहा था। ठंडी हवा के झौंको से पत्तियों से टपकती बूंदें छिड़काव करती सुहाना मंजर प्रस्तुत कर रही थीं।
ज्यादातर बच्चे और बूढ़े ही नजर आ रहे थे। बच्चों के शोर से वातावरण गुंजायमान हो रहा था।

मिस्टर एंड मिसेज माथुर भी अपने नियमानुसार चार दिन के ब्रेक के बाद पार्क की हवा खाने घर से निकल आए थे। मिस्टर माथुर पिछले साल ही एक प्राइवेट सेक्टर कंपनी से जी.एम. की पोस्ट से रिटायर हुए थे। गोरे चिट्ठे, पूरे ऊंचे-लंबे भव्य व्यक्तित्व के मालिक माथुर साहब स्टाइल में रहने में विश्वास रखते थे। बैंगनी कलर का सुंदर कढ़ाई वाला सिल्क का कुर्ता उन पर खूब जंच रहा था। कनपटी पर हल्की-सी सफेदी के अलावा उनके घने बाल नेचुरली काले ही थे।
मिसेज माथुर भी ग्रेसफुल लेडी थीं लेकिन पति से उन्नीस ही थीं। उनका इकलौता बेटा अंशुमन और उसकी पत्नी अनन्या दोनों ही दुबई में थे। डॉक्टरी का कोर्स करते हुए ही दोनों में लव हो गया था। दोनों ने अपने अभिभावकों की रजामंदी से ही शादी की थी।

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मिसेज माथुर जब से आईं थीं उनकी नज़रें लगातार मिस्टर एंड मिसेज कपूर को ढूंढ़ रही थी। हम तो आज थोड़ा लेट हो गए लेकिन, कपूर्स तो वक्त के पाबंद हैं। कहीं उनमें से एक की तबियत तो खराब नहीं? उनकी नाजुक सेहत देखते हुए यह संभव है।
मिसेज कपूर के घुटनों में तेज दर्द रहता है। उन्हें चलने-फिरने में बहुत तकलीफ होती है। कहीं आज दर्द ज्यादा तो नहीं बढ़ गया। अभी मिसेज माथुर यह विचार ही रही थीं कि सामने से मिस्टर कपूर आते दिखाई दिये, वे अकेले ही आ रहे थे। भाई साहब आज अकेले ही?
हां वो सुधा के पैरों में दर्द बढ़ गया था। कहने लगी मैं रेस्ट करूंगी आप अकेले ही चले जाइये। ओह! मिसेज माथुर ने अफसोस प्रगट करते हुए कहा। आप लोग ब्रिस्क वॉक कर आइए। मैं तब तक यहीं बैठती हूं। फिर आपके साथ चलेंगे। सुधाजी का मन बहलाने।

उनके जाने के बाद मिसेज आशा माथुर ने अपने चारों तरफ निगाह डाली। पार्क बहुत बड़े एरिया में फैला हुआ था। जॉगिंग के लिए स्ट्रिप बनी हुई थी। बड़े-बड़े छायादार पेड़ों से झरते पत्ते एक नेचुरल वातावरण बनाए रखते। बच्चों के शोरगुल से पार्क में खूब रौनक रहती। बड़े बच्चे फुटबॉल या क्रिकेट खेलते। छोटे कभी सीसॉ तो कभी चकरी वाले झूलों पर बैठे बचपन का स्वर्गीय आनंद लूटते। कुछ बुजुर्ग नीचे चटाई या चादर बिछाए ताश पीटते नजर आते तो कुछ सामूहिक भजन कीर्तन में रमे म्युजिक इज हायस्ट फॉर्म ऑफ रिलिजिन का संदेश सुनाते।

आशाजी जब भी अकेली खाली बैठतीं ध्यान बेटे बहू की ओर चला जाता, न चाहते हुए भी बहू का व्यवहार याद कर उनकी आंखों की कोर भीग जाती। बेटी न होने का गम सालने लगता। जहां रहें खुश रहें। ईश्वर इन्हें लंबी उम्र और अच्छा स्वास्थ्य दे। उनकी सब इच्छाएं पूर्ण हों वे आशीर्वाद जरूर देतीं लेकिन उन कांटों की चुभन की तड़प से वे बच न पातीं जो उनकी बहू अनन्या ने उन्हें साथ रहते हुए दी थी।
उसकी सोच उल्टी थी। हर बात को नेगेटिव में लेने की उसकी आदत ने घर की सुख-शांति भंग करके रख दी थी। वह घर में ढेर से पूर्वाग्रह लिए आई थी। जाने कहां किसने उसे इतनी गलत शिक्षाएं दे रखी थीं। उन्हें तो वह पहले ही दिन से अपना प्रतिद्वंद्वी मान पटखनी देने पर तुली थी।

उनके हर प्यार भरी पहल को हिकारत से देखती। वह उन्हें हर समय हर बात में नीचा दिखाने की ही कोशिश में रहती। वे कितनी डरी सहमी रहा करतीं हर समय हर बात की सफाई देते-देते थक चुकी थीं वे। बेटा तो पराया होना ही था। इकलौता बेटा जिसे, कितने लाड़ दुलार से पाला था उन्होंने पल भर में ही जैसे पराया हो गया था।
हर समय उन्हें कटघरे में खड़ा किए रहता। उनके दुबई जाने पर उन्हें कितनी राहत मिली थी। हालांकि, वक्त लगा था संभलने में। लेकिन, धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। उन्होंने अपने हम उम्र लोगों के साथ लाइफ को नये सिरे से एन्जॉय करना सीख लिया था। उनकी ये सेकंड इनिंग बेहद खुशगवार थी। साल में एक या दो बार फॉरेन ट्रिप भी लग जातीं।

अच्छा खाना, अच्छा पहनना जिसे नज़र लगाने वाली आंखें न थीं। हां, बहू न उन्हें अच्छा खाते देख सकती थी न पहनते। बेटे से शिकायत करते हुए उसे उन्होंने कई बार सुना था। ‘बुढ़ापे में ऐश सूझ रही है, ‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम, ‘चटोरी बुढिय़ा…एक पढ़ी लिखी लड़की के मुंह से ऐसी बदतमीजी की बातें और उनका बेटा था जो चुपचाप सुनता रहता। अनजाने ही आंखों की कोर भीग गई थीं। उन्होंने अपने को कंट्रोल किया। सर झटक के उठ खड़ी हुईं। देखा सामने से उनके पति और कपूर साहब हंसते बतियाते ठहाके लगाते चले आ रहे थे। उनके साथ ही एक अजनबी हमउम्र व्यक्ति भी थे। उनके पति ने पास आते ही उनका परिचय कराते हुए पत्नी से कहा ‘मीट मिस्टर शाह। आप आर्मी से रिटायर्ड हैं। देख के पता चलता है ना आशा। क्या शानदार पर्सनेलिटी है। ‘हां सो तो देख रही हूं। आशा माथुर ने उनसे करबद्ध अभिवादन करते हुए कहा।

चलिए भाभीजी आप हमारे यहां चल रही हैं न। और शाह साहब आप भी आमंत्रित हैं। मिसेज कपूर से मिलकर आप निराश नहीं होंगे। आपकी तरह वो भी उर्दू शायरी में बहुत दिलचस्पी रखती हैं। इन फैक्ट इनका एक गजल कलेक्शन ‘कहकशां पब्लिश भी हो चुका है।

‘दैट्स ग्रेट मिस्टर शाह ने खुश होकर कहा। लाइक माइंडेड लोग मिल बैठें तो वक्त का पता ही नहीं चलता।
मिसेज कपूर को कपूर साहब उन सबके आने के बारे में फोन कर चुके थे। वे उन सबको देखकर बहुत प्रसन्न नजर आ रही थीं। हल्की-फुल्की बातचीत के दौरान आशा माथुर ने उनसे पूछा आपके बेटे बहू यूएस. से कब आ रहे हैं।
सिद्धार्थ और आलिया अगले महीने की बीस तारीख को आ रहे हैं। क्रिसमस पर हर एक साल छोड़कर वे हमारे साथ होते हैं। कुछ दिन की रौनक रहती है। दोनों बच्चों से घर गुलजार रहता है। बाद में फिर वही पुराने प्रेमी-प्रेमिका हम अपनी गुटरगूं में मस्त हो जाते हैं।

मिसेज कपूर के मजाकिया लहजे पर सभी हंस पड़े। कपूर साहब अब मिस्टर शाह की तरफ उन्मुख थे। अपनी फेमिली के बारे में कुछ बताइए शाह साहब। कौन-कौन हैं आपके घर में।
एक बेटा है विवेक और बेटी है निताशा। बेटा यूएस में बोइंग में कार्यरत है। बेटी के विवाह को लेकर परेशान हैं। घर बैठे अच्छे ऑफर मिल रहे हैं। लेकिन बेटी मास कम्युनिकेशन्स का कोर्स करने के लिए बाहर जाने की जिद पकड़े बैठी है। बस इसी को लेकर घर में थोड़ी अशांति चल रही है। उधर बेटे का विवाह भी टूटने की कगार पर है। इंटरनेट के जरिए हुई थी शादी। शादी क्या कनविनियंस देखी गई थी। उसने तो लड़के को बेवकूफ बना कर रख दिया जिस शहर में उसका जॉब था कहती थी तुम अपनी नौकरी छोड़कर यहीं पर काम ढूंढ़ लो। ऐसे कहीं भी कोई नौकरी रखी है। फिर उसका अपना जॉब बहुत अच्छा है। लाखों रुपया कमा रहा है वह अपना जॉब क्यों छोड़े।

शाह साहब आज यह प्रॉब्लम आम है। दूर क्यों जाएं हमारे अपने घर में भी यही हुआ है। बहू का जॉब बोस्टन में था तो लड़के को डलावेयर से बोस्टन शिफ्ट करना पड़ा। वुमन एम्पावरमेंट के चलते अब हायर क्लास में तो पलड़ा दूसरी तरफ ही झुक गया है। पुरुषों को तो औरतें नपुंसक बना रही हैं।
छोटू सबके लिए चाय नाश्ता ले आया था।
कपूर साहब आप लोग तो यूएस घूम आये होंगे। गये थे लेकिन चार दिन में ही बुरी तरह ऊब गये। छोटे दड़बे से फ्लैट में दुनिया से कटऑफ होकर रहो। बेटा बहू सुबह ही काम पर निकल जाते थे। रात को बिल्कुल थक के चूर होकर लौटते। हमारे लिए टाइम पास करना ही मुश्किल था। न वहां हम किसी को जानते पहचानते थे न वहां के रास्तों से परिचित।
सभी एक ही किश्ती में सवार थे। वे सभी सोच में पड़ गए थे। मिसेज माथुर ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा अंधेरा हो चला है अब हमें चलना चाहिए।

सभी ने एक दूसरे से विदा ली और अपने घर की ओर चल पड़े। घर पहुंचकर आशा माथुर सोफे पर लेटकर अपनी थकान उतार ही रही थीं कि दुबई से अंशुमन का फोन आ गया। ‘मम्मा हम दो हफ्ते के लिए इंडिया आ रहे हैं। फ्लाइट परसों रात एक बजे पहुंचेगी। आप लोगों की नींद जरूर खराब होगी।
कैसी बात कर रहे हो बेटे तुम्हारे आने की खबर सुन अब नींद किसे आएगी उन्होंने आजिजी से कहा।
ओके मॉम मिलते हैं। कहकर अंशुमन ने फोन काट दिया। क्या बहू बात नहीं कर सकती थी। मन में मलाल हुआ। लेकिन बहू बात करती ही कहां थी।
यह तो वही जबर्दस्ती का रिश्ता पाले रहतीं वे जितना पूछतीं एक दो शब्दों में जवाब देकर चुप्प हो जाती थी बहू। वे अकेली इकतरफा कब तक संवाद बनाने की कोशिश करतीं।

उन्हें अब खाने की चिंता सताने लगी। क्या बनाएंगी क्या खिलाएंगी। फ्रिज खोलकर देखा लौकी, तोरी, टमाटर हैं बस फ्रिज में उनके यहां यही सब रहता। लिस्ट बनाने बैठ गईं। ढेर से स्नैक्स, दूध के एक्स्ट्रा पैकेट, दही आइसक्रीम मौसमी फल तथा अच्छी-अच्छी सब्जियां। ये सब कल ही ले आएंगे। अब वक्त ही कहां बचा है। बेटा-बहू का कमरा भी ठीक करना है।
वे जानती थीं पंद्रह दिन में वह उनके पास मुश्किल से दो-तीन दिन रुकेगा बाकी दिन ससुराल में और कुछ घूमने फिरने में ही निकलेंगे। बस उनकी लाइफ डिस्टर्ब होकर रह जाएगी, लेकिन अगले ही पल बेटे के लिए ढेर सा ममत्व उमड़ आया। और मन प्लानिंग में जुट गया। बच्चों को क्या गिफ्ट्स देने हैं। क्या-क्या पका कर खिलाना है। माथुर साहब को बीवी की चिंता सता रही थी। आशा मानेगी नहीं उछाह उत्साह में शक्ति से ज्यादा काम करेगी और बाद में बिस्तर पकड़ लेगी।
मिस्टर शाह के बेटे-बहू का आपसी रजामंदी से तलाक हो गया था। पति-पत्नी के लिए ये ग्रेट रिलीफ था लेकिन साथ ही बेटे ने एक अच्छी सी पारंपरिक घरेलू लड़की की खोज की जिम्मेदारी उन पर डाल दी थी। निताशा उनकी अवज्ञा कर यू.एस.ए. चली गई।

इधर कपूर साहब के बेटे इस बार इंडिया आए तो घर आने के बजाय होटल में ही रुके। उनके साथ कोई विदेशी कपल भी था। सिद्धार्थ ने फोन पर कहा ‘डैड आप और मॉम दिल्ली आकर मिल लें। हमें जैक और ब्रिटनी को भारत दर्शन कराना है। बेटे तुम जानते हो तुम्हारी मॉम ट्रेवल नहीं कर सकती हैं।
‘ओके देन नेक्स्ट टाइम डैड कहकर सिद्धार्थ ने फोन रख दिया था।
कपूर साहब असमंजस में थे कि आखिर पत्नी को जो बेटे, बहू, पोते-पोती के आने की उत्सुकता से बाट देख रही हैं कैसे यह खबर दें। वे जानते थे पत्नी को यह बात सुनकर कितनी निराशा होगी। देर सबेर लेकिन बताना भी पड़ेगा।
उन्हें असमंजसता से स्वयं उनकी पत्नी ने ही निकाल दिया। आप परेशान न हों। मैंने पैरलल फोन पर आप की बेटे से हुई बातें सुन ली हैं। मैं जरा भी निराश नहीं हुई हूं। बल्कि सच कहूं तो इस बार मुझे उनके न आने की खबर से बहुत रिलीफ मिला है। अब काम मुझसे होता नहीं।

जिस तरह उनके आने से काम बढ़ता है आप जानते हैं। उन्होंने तो काम को हाथ लगाना नहीं। सारा बोझ मुझ पर ही आ जाता है। अगर वे समझदार हैं तो क्यों न हम भी समझदार हो जाएं। उम्मीदें सिर्फ दु:ख देती हैं। न उन्हें पालेंगे न दु:खी होंगे। अब तो प्रभु से यही प्रार्थना है वे जहां रहें खुश रहें।
उषा जैन शीरीं – विभूति फीचर्स

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