यूं तो कोरोना की दूसरी लहर में कई कड़वे-मीठे अनुभव हुए। मानवता के शत्रु कुछ नर राक्षकों के औषधि और ऑक्सीजन की कालाबाजारी सम्बन्धी दास्तानें सुनी, परन्तु मन को सुकून देने वाली मानवता के पुजारियों की भी हृदयस्पर्शी घटनाओं का उल्लेख सम्मुख आता रहा है।
सबसे अधिक हृदयस्पर्शी यह आलेख दिल्ली पुलिस के एक 56 वर्षीय ए.एस.आई. राकेश कुमार का है। राकेश अपनी ड्यूटी के अलावा पचास ऐसे शवों को गरिमापूर्ण अंतिम विदाई दे चुके हैं, जिनका कोई सगा-संबंधी मुखाग्रि देने न पहुंच सका। साथ ही वें 1100 से अधिक शवों को अंतिम संस्कार में मदद कर चुके हैं।
नि:संदेह हर परिवार की अपनी स्थितियां होती हैं, पुरूष हो सकते हैं कि कोविड से लड़ रहे हों, परिवार की महिलाएं मुखाग्रि देने की स्थिति में न हो अथवा अन्य कोई कारण रहा हो। बहरहाल राकेश कुमार ने मानवता की प्रेरक मिसाल पेश करके इंसानियत पर भरोसा बढ़ाया है।
एक बार इन ए.एस.आई. राकेश कुमार की ड्यूटी लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर लगी थी। शवों के दबाव के कारण कर्मचारी भी अंतहीन दाह संस्कारों की ड्यूटी देकर थक गये थे। ऐसे अवसर पर राकेश कुमार नायक बनकर उभरे। कुछ ही दिन बाद इनकी सुपुत्री की शादी के बावजूद भी इन्होंने अंतिम संस्कारों की जिम्मेदारी ही निभाई और बेटी की शादी में नहीं जा पाये।
धन्य हैं ऐसे कोरोना योद्धा। इन्हें राष्ट्रीय अलंकार से अलंकृत किया जाना चाहिए था। कम से कम सार्वजनिक सम्मान तो मिलना ही चाहिए। ऐसे महामानव ही इस समाज को सही दिशा देने में सक्षम हैं।