नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को एक ट्रांसजेंडर शिक्षिका द्वारा दायर याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया, जिसकी सेवाएं पिछले एक साल में दो निजी स्कूलों ने सिर्फ उसकी लिंग पहचान के कारण “गैरकानूनी” रूप से खत्म कर दी थीं।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “हम देखेंगे कि हम क्या कर सकते हैं” और इस मामले में केंद्र सरकार और गुजरात व उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों और अन्य को नोटिस जारी किया।
वकील यशराज सिंह देवड़ा के जरिए दायर याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को उत्तर प्रदेश के एक स्कूल के कर्मचारियों और छात्रों को उसकी ट्रांसजेंडर पहचान के बारे में पता चलने के बाद इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इसमें कहा गया है, “याचिकाकर्ता की सेवा अवैध रूप से समाप्त करने में प्रतिवादी नंबर 5 (उमा देवी चिल्ड्रेन्स एकेडमी, उत्तर प्रदेश) की कार्रवाई ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों की सुरक्षा) [टीपीपीआर] अधिनियम, 2019 की भावना और प्रावधानों के विपरीत है और यह भी उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम, 1921 का सरासर उल्लंघन करता है।”
एक अन्य रुख में गुजरात के जामनगर में जेपी मोदी स्कूल ने याचिकाकर्ता को संकेत दिया कि उसका ट्रांसजेंडर होना उसे रोजगार देने में एक मुद्दा होगा।
हालांकि उसे इंगलिश टीचर के रूप में नियुक्ति पत्र जारी किया गया था, लेकिन स्कूल ने केवल उसके लिंग के आधार पर उसे ज्वाइन करने की अनुमति नहीं दी।
याचिका में कहा गया है, “इस स्तर पर माननीय न्यायालय का हस्तक्षेप बेहद जरूरी है। टीपीपीआर अधिनियम, 2019 और टीपीपीआर नियम, 2020 की सुरक्षा जमीन पर नहीं उतर रही है।”