अकेली महिलाओं का हमारे समाज में जीना दूभर है चाहे वह कितनी ही समृद्ध और आत्मनिर्भर क्यों न हों। योग्य वर की तलाश में युवतियां प्रौढ़ होती जा रही हैं। एकाकी जीवन महिलाओं के लिए बहुत मुश्किल है।
कुछ महिलाएं समय रहते विवाह बंधन में नहीं बंध पाती। कुछ महिलाएं अपने कैरियर को संवारने में ही इतना व्यस्त रहती हैं कि उन्हें विवाह का ख्याल ही नहीं आता और जब इस बारे में वे सोचती हैं तब इतना वक्त निकल चुका होता है कि उन्हें मनपसंद वर की प्राप्ति नहीं होती और वे अविवाहित रहने को मजबूर हो जाती हैं। कुछ युवतियां पारिवारिक दायित्वों को निभाने में ही अपनी आधी से ज्यादा जिंदगी बिता देती हैं।
आज युवा वर्ग की सोच में परिवर्तन आया है। हर कोई अपने ढंग से जिंदगी जीना चाहता है। स्त्रियों को अपनी कल्पना का साथी नहीं मिल पाता, घरवालों को अपनी बेटी के लिए योग्य वर नहीं मिल पाता, फलत: विवाह का वक्त निकलता जाता है और-धीरे-धीरे उम्र खिसकने के साथ-साथ उन्हें मन मसोस कर रह जाना पड़ता है। कहीं-कहीं दहेज जैसी कुप्रथा भी आड़े आ जाती है।
युवावस्था तो किसी तरह निकल जाती है पर ढलती उम्र में यह अकेलापन खटकने लगता है। किसी भी काम में मन नहीं लगता। किसके लिए और क्यों जी रही हैं, यह सवाल बार-बार मन को कचोटता है। जिन भाई-बहनों और घर परिवार की जिम्मेदारी को निभाने में वे अपनी जवानी अर्पित कर देती हैं, वही भाई-बहन अपना स्थायित्व पा लेने के बाद उनसे दूर होने लगते हैं और यही अकेलापन उनके जीने की इच्छा को कम करता चला जाता है।
कभी-कभी उन्हें लगता है कि यह जिंदगी बेमतलब, बेकार है। जिंदगी को वे व्यर्थ ही ढो रही हैं और यही अहसास उनके अंदर एक अवसाद सा भर देता है और वे मानसिक रूप से बीमार होती चली जाती हैं।
ऐसी अविवाहिता, विधवाएं और परित्यक्ताओं को समाज भी बहुधा शक की नजर से देखता है। किसी पुरूष के साथ उठने-बैठने, खाने-पीने, हंसने-मुस्कुराने का लोग अलग ही अर्थ निकालना शुरू कर देते हैं। लोगों की नजरों में अविवाहित महिलाएं खटकती हैं और इनकी त्रासदी और अधिक बढ़ जाती है। यहां तक कि उनके भाई-भाभी, बहन, जीजा या उनके बच्चे वगैरह भी इतने स्वतंत्र रूप से अपनेपन से पेश नहीं आ पाते, फलत: उनकी गंभीरता व अकेलापन एक चिड़चिड़ेपन का रूप धारण करना शुरू कर देते हैं।
अत: आज माता-पिता तथा महिला स्वयं के योग्य साथी ढूंढने अथवा समतुल्य वर की तलाश में अधिक समय व्यर्थ न कर समझौतावादी नजरिया रखें तो निस्संदेह महिलाएं ऐसे जीवन की त्रासदी से निजात पा सकती हैं, उपेक्षित होने से बच सकती हैं और एक संतोषजनक जीवन जी सकती हैं।
– मीना जैन छाबड़ा