नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कोलकाता में एक पीजी डॉक्टर के साथ नौ अगस्त को कथित दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या से संबंधित मामले की सुनवाई का सीधा प्रसारण नहीं करने की पश्चिम बंगाल सरकार की गुहार ठुकराते मंगलवार को कहा कि यह एक बहुत बड़ा सार्वजनिक महत्व का मामला है और लोगों को यह पता होना चाहिए कि अदालत में क्या हो रहा है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पार्दीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलें सुनने के बाद उनकी गुहार ठुकरा दी।
सिब्बल ने इस मामले में अदालती कार्यवाही का सीधा प्रसारण नहीं करने की गुहार लगाते हुए कहा था कि इस मामले में संबंधित अधिवक्ताओं को धमकाया गया, उन्हें लांक्षित किया गया और उनकी छवि खराब की गई।
सिब्बल ने कहा कि जैसे ही न्यायाधीश इस अत्यधिक भावनात्मक मुद्दे पर कोई टिप्पणी करते हैं, लोगों की प्रतिक्रिया सामने आती है। उन्होंने कहा, “हमारी 50 साल की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है।”
सिब्बल ने कहा कि स्वप्निल त्रिपाठी के फैसले (सीधा प्रसारण से संबंधित) में शीर्ष अदालत ने कहा था कि अत्यधिक भावनात्मक मामलों में सीधा प्रसारण से बचा जा सकता है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि संबंधित महिला अधिवक्ताओं को दुष्कर्म या एसिड अटैक की धमकी दी जा रही है।
इस पर पीठ ने कहा, “किसी भी मामले में किसी भी पक्ष की ओर से पेश होने वाले किसी भी वकील को धमकी नहीं दी जा सकती। हम इसका ध्यान रखेंगे।”
शीर्ष अदालत ने स्वत: संज्ञान के मामले में सुनवाई के दौरान सीबीआई जांच स्थिति विवरण पर भी गौर किया और उसके द्वारा की गई जांच पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि इसका खुलासा करने से जांच प्रभावित हो सकती है।
पीठ ने कहा, “हमें पूरा विश्वास है कि जांच से और सच्चाई सामने आएगी, इस पर फिलहाल कोई टिप्पणी करना अनुचित होगा।”