नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में शहरी और स्थानीय निकाय चुनाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है। कोर्ट में सुनवाई के बाद अब निकाय चुनाव और टलने की संभावना है। अब यूपी निकाय चुनाव के मामले पर अगली सुनवाई 27 मार्च को होगी। हालांकि ओबीसी आरक्षण के मुद्दे की जांच के लिए गठित आयोग ने अंतिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप चुका है।
ओबीसी आरक्षण के मुद्दे की जांच के लिए गठित ओबीसी आयोग की रिपोर्ट कोर्ट में पहले ही पेश की जा चुकी है. 4 जनवरी को SC ने OBC आरक्षण कमेटी की रिपोर्ट तक चुनाव पर रोक लगाई थी।
सुप्रीम कोर्ट से इजाजत मिलने के बाद ही नगर विकास विभाग और राज्य निर्वाचन आय़ोग चुनाव की प्रक्रिया शुरू करेगा। नगर निगम मेयर और नगरपालिका अध्यक्ष की सीटों का नए सिरे से आरक्षण निर्धारित करने का काम भी शुरू होगा।
उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश नगरीय निकाय समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल कर चुनाव कराने की अनुमति मांगी है। सरकार का ऐसा मानना है कि अप्रैल से मई के दौरान चुनाव करा लिया जाए। ओबीसी आरक्षण से जुड़े पिछड़ा वर्ग आयोग ने ढाई महीने से भी कम समय में सभी 75 जिलों का दौरा कर ओबीसी प्रतिनिधित्व से जुड़े आंकड़े जुटाए थे और पिछले हफ्ते सरकार को रिपोर्ट सौंप दी थी। सरकार ने ये रिपोर्ट पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी।
उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय चुनाव में करीब तीन महीने की देरी हो चुकी है। लखनऊ नगर निगम, कानपुर नगर निगम, वाराणसी नगर निगम, गोरखपुर नगर निगम जैसे नगर निगमों और 200 नगरपालिकाओं का कार्यकाल खत्म हो चुका है। इनका कामकाज प्रशासकों के हाथ में है। नगर निगम में नगर आयुक्त और नगरपालिकाओं में अधिशासी अधिकारी के हाथ में कमान है।