Friday, November 22, 2024

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला,हर प्राइवेट प्रॉपर्टी को सरकार नहीं ले सकती

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत सरकार को यह अधिकार दिया है कि वह समाज के हित में किसी व्यक्ति या समुदाय की निजी संपत्ति को अपने नियंत्रण में ले सकती है। संविधान का अनुच्छेद 39 (बी) “राज्य के नीति निदेशक तत्वों” में से एक है, जो राज्य को यह निर्देश देता है कि वह “सामाजिक और आर्थिक संपत्तियों का ऐसा वितरण सुनिश्चित करे कि वे समाज के सभी वर्गों के भले के लिए प्रयुक्त हों।” इसका उद्देश्य संपत्ति और संसाधनों का समान वितरण करना और समाज में आर्थिक असमानता को कम करना है।

 

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हालांकि, यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि ऐसी कार्रवाई केवल समाज के व्यापक कल्याण के लिए हो सकती है, और यह संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत उचित प्रक्रिया और मुआवजे के अधीन है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में स्पष्ट किया कि सरकार समाज के व्यापक कल्याण के नाम पर संपत्तियों को अधिग्रहीत कर सकती है, बशर्ते कि इसे वैध प्रक्रिया के तहत किया जाए और मुआवजे का उचित प्रावधान हो।

 

सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बड़ी बेंच ने अपने हालिया फैसले में स्पष्ट किया है कि सरकार निजी संपत्तियों का अधिग्रहण या उपयोग केवल तभी कर सकती है, जब उस संपत्ति का उपयोग “सार्वजनिक हित” में हो। यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के संदर्भ में है, जो राज्य को यह निर्देश देता है कि वह आर्थिक संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करे ताकि समाज के सभी वर्गों को उनका लाभ मिल सके। बेंच ने कहा कि निजी संपत्ति का अधिग्रहण केवल “सार्वजनिक हित” की उपस्थिति में ही जायज ठहराया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि किसी व्यक्ति या समुदाय की संपत्ति को केवल समाज के नाम पर नहीं लिया जा सकता; इसके पीछे एक ठोस सार्वजनिक उद्देश्य होना चाहिए जो समाज के कल्याण से जुड़ा हो। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार को किसी भी अधिग्रहण के लिए उचित मुआवजा देना होगा और ऐसा अधिग्रहण केवल संविधान के प्रावधानों और उचित प्रक्रिया के तहत ही किया जाना चाहिए। इस फैसले ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि निजी संपत्ति के अधिकार का सम्मान किया जाएगा, और सरकार उस पर तभी नियंत्रण करेगी जब वह समाज के बड़े हित में हो।

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चीफ जस्टिस ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि पुराना फैसला विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि हम मानते हैं कि अनुच्छेद 31सी को केशवानंद भारती मामले में जिस हद तक बरकरार रखा गया था, वह बरकरार है और हम सभी इस पर एकमत हैं। अनुच्छेद 31सी लागू रहेगा। चीफ जस्टिस ने कहा कि प्रॉपर्टी के निरस्तीकरण को प्रभावी बनाना और अधिनियमन नहीं करना विधायी इरादे से मेल नहीं खाता और ऐसा करना मूल प्रावधान को छोटा कर देगा।

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कोर्ट ने कहा कि 42वें संशोधन की धारा चार का उद्देश्य अनुच्छेद 39बी को निरस्त करना और उसी समय प्रतिस्थापित करना था। सभी निजी सम्पति समुदाय के भौतिक संसाधन नहीं हो सकते। हालांकि कुछ सम्पति भौतिक ससाधन हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि 1960 और 70 के दशक में समाजवादी अर्थव्यवस्था की ओर झुकाव था लेकिन 1990 के दशक से बाजार उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर ध्यान केंद्रित किया गया। भारत की अर्थव्यवस्था की दिशा किसी विशेष प्रकार की अर्थव्यवस्था से दूर है बल्कि इसका उद्देश्य विकासशील देश की उभरती चुनौतियों का सामना करना है। पिछले 30 सालों में गतिशील आर्थिक नीति अपनाने से भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है।

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चीफ जस्टिस ने कहा कि वह जस्टिस अय्यर के इस विचार से सहमत नहीं है कि निजी व्यक्तियों की संपत्ति सहित हर संपत्ति को सामुदायिक संसाधन कहा जा सकता है। नौ सदस्यीय संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस ह्रषिकेश राय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा ,जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह थे। नौ जजों की बेंच में आठ जजों ने उपरोक्त फैसला सुनाया है जबकि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इन जजों से विपरीत फैसला सुनाया।

 

सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक ऐतिहासिक फैसले में यह व्यवस्था दी है कि राज्य सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को अपने नियंत्रण में नहीं ले सकता है। इस मामले में बहुमत से सुनाए गए फैसले में कहा गया है कि राज्य केवल उन्हीं संसाधनों पर दावा कर सकता है जो सार्वजनिक हित से जुड़े हों और जो समाज के लाभ के लिए आवश्यक हों।

 

फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं मानी जा सकतीं और इसलिए सरकार उन पर कब्जा नहीं कर सकती। यह फैसला मुख्य रूप से न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर के 1978 के निर्णय को पलटने पर केंद्रित था, जिसमें उन्होंने समाजवादी विचारधारा के तहत कहा था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहीत किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुराने फैसले विशेष समाजवादी और आर्थिक विचारधाराओं से प्रेरित थे और अब यह दृष्टिकोण संविधान के आधुनिक मूल्यों के अनुकूल नहीं है।

 

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने बहुमत से फैसले में कहा कि “निजी संपत्तियों को सार्वजनिक संसाधन मानना” गलत है और कोर्ट का कार्य आर्थिक नीतियों को निर्धारित करना नहीं, बल्कि आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने की दिशा में न्यायसंगत व्यवस्थाएं बनाना है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना आंशिक रूप से इस फैसले से असहमत थीं और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने इससे असहमति व्यक्त की।

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