यदि मनुष्य को कोई फोड़ा अथवा घाव हो और वह उसे छिपाता फिरे तो वह एक दिन नासूर बन जाता है। उसमें दुर्गंध आने लगेगी। घाव बहता रहेगा। कभी भरेगा नहीं, ठीक नहीं हो पायेगा, बल्कि एक दिन वह लाइलाज हो जायेगा। यदि रोग को छिपाया जायेगा उसे प्रकट नहीं किया जायेगा तो उसकी चिकित्सा भी नहीं हो पायेगी।
इसलिए मनुष्य को कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिसे छिपाना पड़े। अपने संतोष के लिए आदमी कुछ भी करे, परन्तु वह परमात्मा से कुछ भी नहीं छिपा सकता। यह तथ्य सर्वविदित है कि परमात्मा सर्वशक्तिमान है, सर्वज्ञ है (अर्थात सब कुछ जानता है) वह सर्वव्यापी भी है। संसार का सब कुछ उनके संज्ञान में रहता है।
शुभ कर्म करने वालों की वह सदैव रक्षा करते हैं। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह सदैव उत्तम कार्य ही करे, छिपाने योग्य कुछ भी न करे। प्रत्येक कार्य में पारदर्शिता हो ताकि परिणाम भी अच्छे मिले। सुख मिले, मन संतुष्ट और प्रसन्न रहे। स्मरण रहे संतुष्टता और प्रसन्नता प्रभु की ओर से मनुष्य को प्राप्त वरदानों में ऊंची पायदान पर है।