एक समय महर्षि दयानन्द दानापुर में विराजमान थे। एक दिवस एक भक्त ने महर्षि से कहा “स्वामी जी आप ऋषि हैं?”
स्वामी जी ने नम्रता से कहा, “ऋषियों के अभाव में आप मुझे चाहे जो कह ले। यदि मैं गौतम, कपिल कणादादि ऋषियों के समय में हुआ होता तो मेरी गणना साधारण विद्वानों में भी कठिनता से होती।”
महान वैज्ञानिक न्यूटन जिन्होंने गुरूत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया था, उनकी विद्या बुद्धि पर सारे इंग्लैंड को गर्व था, किन्तु स्वयं न्यूटन को न कोई गर्व था न अहंकार। एक दिन एक महिला ने न्यूटन की योग्यता एवं बुद्धि की प्रशंसा की। न्यूटन सुनकर फूलकर कुप्पा नहीं हुए, बल्कि विनम्रता के साथ कहा कि मैं तो उस बच्चे के समान हूं, जो सत्य के विशाल समुद्र के किनारे पर बैठा हुआ केवल कंकरों को चुनता रहा हूं।
यह होती है विनम्रता। इसलिए पर्याप्त विद्या पाकर यदि आप में अहंकार आने लगे तो ऐसे महापुरूषों की विनम्रता का ध्यान रख लिया करो।