Saturday, April 5, 2025

संसद की प्राथमिक भूमिका संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करना- धनखड़

नयी दिल्ली। उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि संसद की प्राथमिक भूमिका संविधान तथा लोकतंत्र की रक्षा करना है और कोई भी कार्यवाही समीक्षा से परे है।

 

धनखड़ ने आज राज्यसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों के लिए प्रबोधन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय मुद्दों और हितों को राजनीतिक विचारों से ऊपर रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संसद की मूल भूमिका संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करना है। संसद से अधिक गंभीर लोकतंत्र का संरक्षक कोई नहीं हो सकता। उन्होंने सांसदों से कहा, “यदि लोकतंत्र पर कोई संकट आता है, यदि लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला होता है, तो आपकी भूमिका निर्णायक होती है।”

धनखड़ ने कहा कि संसद की मूल मुख्य और निर्णायक भूमिका दो हैं । इनमें संविधान का सृजन और संरक्षण करना तथा प्रजातन्त्र की रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि संसद में चर्चा के लिए कोई भी विषय वर्जित नहीं है, बशर्ते उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सदन की प्रक्रिया के नियमों में निर्धारित उचित प्रक्रिया का पालन किए जाने पर किसी भी विषय, किसी भी व्यक्ति, किसी भी व्यक्ति और अध्यक्ष के आचरण पर भी चर्चा की जा सकती है।

 

 

संसद की स्वायत्तता और अधिकार पर जोर देते हुए धनखड़ ने कहा, ” संसद अपनी प्रक्रिया और अपनी कार्यवाही के लिए सर्वोच्च है। सदन में, संसद में कोई भी कार्यवाही समीक्षा से परे है, चाहे वह कार्यपालिका हो या कोई अन्य प्राधिकारी।” उन्होंने कहा कि संसद के अंदर जो कुछ भी होता है, उसमें अध्यक्ष के अलावा किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। यह कार्यपालिका या किसी अन्य संस्था का नहीं हो सकता।

 

 

उन्होंने संसद में सदस्यों की ” हिट एंड रन” रणनीति पर अत्यधिक चिंता व्यक्त की उन्होंने कहा कि एक सदस्य संसद में बोलने से पहले मीडिया को बाइट देता है, संसद में केवल ध्यान और मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए बोलता है और फिर अन्य सदस्यों की बात सुने बिना सदन से बाहर निकल जाता है और फिर बाहर जाकर मीडिया को बाइट देता है। यह बहुत ही चिंताजनक है। उन्होंने कहा, “इससे बड़ी विभाजनकारी गतिविधि कोई और नहीं हो सकती।”

 

 

आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का एक दर्दनाक, हृदय विदारक और सबसे काला अध्याय बताते हुए धनखड़ ने जोर दिया कि उस दौरान भारतीय संविधान केवल एक कागज़ तक सीमित रह गया था, जिसमें मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन किया गया था और नेताओं को अन्यायपूर्ण तरीके से जेल में डाला गया था।

 

राज्यसभा के सभापति ने देश में संसदीय प्रणाली की मौजूदा स्थिति पर दुख जताते हुए कहा कि ऐसा समय आता है जब राष्ट्रीय मुद्दों और हितों को राजनीतिक विचारों से ऊपर रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज की स्थिति चिंताजनक है और संसद में व्यवधान और गड़बड़ी को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

 

उन्होंने कहा, “यह लोकतंत्र की मूल भावना पर हमला है। गरिमा को नुकसान पहुंचाना लोकतंत्र की जड़ों को हिलाना है। लोकतंत्र के लिए इससे बड़ा कोई खतरा नहीं हो सकता कि यह धारणा बनाई जाए कि अशांति और व्यवधान संसद और राष्ट्र की प्रतिष्ठा की कीमत पर राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए राजनीतिक हथियार हैं।”

 

विचार-विमर्श और संवैधानिक मूल्यों एवं स्वतंत्रता के केंद्र के रूप में संसद की भूमिका पर धनखड़ ने विशुद्ध राजनीतिक दृष्टिकोण से हटकर राष्ट्रवाद और देश के व्यापक कल्याण पर केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

75,563FansLike
5,519FollowersFollow
148,141SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय