गाजियाबाद। चुनाव से पहले गाजियाबाद का नाम बदलने का सियासी दांव खेला गया लेकिन नगर निगम की बोर्ड बैठक में छह माह पहले ध्वनिमत से पास किए गए इस प्रस्ताव को फाइलों में दबा दिया गया है। बोर्ड बैठक में नाम बदलने का प्रस्ताव पेश करने वाली महापौर सुनीता दयाल इस सियासी दांव को खेलकर भूल गई हैं। वहीं, जिन पार्षदों ने जिले का नाम बदलने की आवाज बुलंद की थी, अब चुप्पी साधकर बैठ गए हैं। फैसला शासन को लेना है लेकिन छह महीने बाद भी महापौर की तरफ से प्रस्ताव नहीं भेजा गया है।
नगर निगम की नौ जनवरी को आयोजित बोर्ड बैठक में गाजियाबाद का नाम बदलने का प्रस्ताव पास हुआ था। किसी ने नाम बदलकर गजनगर रखने की सिफारिश की तो किसी ने हरनंदी नगर, गजप्रस्थ, दूधेश्वरनगर और परशुरामनगर का सुझाव दिया। सियासी माइलेज के लिए खुद महापौर ने बोर्ड के समक्ष नाम बदलने का प्रस्ताव रखा था। इसके समर्थन में पार्षदों ने बोर्ड कक्ष में ही जयघोष लगाने शुरू कर दिए।
प्रस्ताव के समर्थक पार्षदों ने बोर्ड बैठक में जिस तरह उत्साह दिखाया, उससे लगा कि कुछ ही दिनों में नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी लेकिन छह महीने से ज्यादा का समय बीतने के बाद भी महापौर की तरफ से प्रस्तावना शासन को नहीं भेजी गई है। अब नगर निगम मुख्यालय में और पार्षदों के बीच के बीच गाजियाबाद के नए नाम का काम तमाम होने की चर्चा होने लगी है।