यदि हमारे विचारों में स्वार्थ है, हम अपने तक सीमित हैं तो हममें एक बहुत बड़ा दोष आ जायेगा। हम ईष्र्यालु हो जायेंगे, क्योंकि उस स्थिति में हम दूसरों की उन्नति देख नहीं पायेंगे, सहन नहीं कर पायेंगे, दूसरों की कुछ सहायता नहीं कर पायेंगे, परोपकार की भावना लुप्त हो जायेगी। इसलिए हमें स्वार्थों को त्यागकर परहित के लिए भी सोचना चाहिए।
मानव जीवन जैसा वरदान मात्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए नहीं मिला है, पर हित की साधना हेतु भी यह हमें प्रभु से प्राप्त हुआ है। जब हमारी चिंतनशैली में यह शुभ परिवर्तन आ जायेगा, तब ऐसे उत्तम विचार हम सभी भारतवासियों के भीतर आ जायेंगे, तो यह देश स्वर्ग बन जायेगा, कलयुग के स्थान पर सतयुग आ जायेगा।
यदि हम विचारों में थोड़ा सा भी गुणात्मक परिवर्तन परहित जैसे शुभ कार्य की ओर कर लें तो हम अपने साथ-साथ दूसरों के सुखों की कामना करने लगेंगे और निश्चय ही यह देश सोने की चिड़िया बन जायेगा। परन्तु जब तक विचारों में स्वार्थ रहेगा, ईष्र्या रहेगी तब तक न हम सुख का अनुभव कर पायेंगे, न दूसरों का भला हो पायेगा और न ही हमारा यह भारत दुनिया का सिरमौर बन पायेगा।
इसलिए हम स्वार्थ पारायणता को त्याग कर अपनी-अपनी क्षमताओं से वे कार्य करें कि संसार में हमारे देश का सम्मान बढ़े तथा हमारा यह प्यारा भारत उस पुरातन परम पद को प्राप्त करें, जब यह सोने की चिड़िया कहलाता था, जिससे हम रहे न रहे हमारी आने वाली पीढ़ियां उस सुख और सम्मान को प्राप्त करेंगी।