Friday, November 22, 2024

क्रिमिनल लॉ से जुड़े तीन विधेयक लोकसभा से पारित, गृहमंत्री बोले दंड की जगह न्याय देना उद्देश्य

नई दिल्ली। लोकसभा ने कानूनी प्रक्रिया से जुड़ी आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम को नए सिरे से परिभाषित करने वाले तीन विधेयकों को मंगलवार को मंजूरी प्रदान कर दी। गृहमंत्री अमित शाह ने इस दौरान सदन में कहा कि विधेयकों का उद्देश्य कानून को दंड केन्द्रित की बजाय न्याय केन्द्रित करना है और भारतीय विचारों को न्यायप्रणाली में स्थान देना है। विधेयक गुलाम भारत के समय अंग्रेजों के लाए शासन संबंधी जरूरतों के लिए बने कानूनों को हटाकर स्वतंत्रता, अधिकारों की रक्षा और निष्पक्षता पर केन्द्रित कानून लाएगा।

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को लोकसभा में भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 को लोकसभा में चर्चा और पारित किए जाने के लिए पेश किया था। चर्चा में कुल 35 सदस्यों ने भाग लिया। इन विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए गृहमंत्री ने आज कहा कि इन विधेयकों से पीड़ित केन्द्रित न्याय व्यवस्था का उद्भव होगा। सरल, सुसंगत, पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था से न्याय मिलने में आसानी होगी। साथ ही निष्पक्ष, समयबद्ध, साक्ष्य आधारित, तेजी से सुनवाई कर दोषसिद्धि दर को बढ़ाना और जेलों पर अतिरिक्त भार कम होगा।

गृह मंत्री ने पिछले मंगलवार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस एक्ट) में बदलाव से जुड़े पिछले सत्र के दौरान पेश विधेयकों को वापस लेकर तीन नए विधेयकों को मंगलवार को लोकसभा में पेश किया। उन्होंने बताया कि पिछली बार पेश विधेयकों को गृह विभाग की स्थायी समिति को भेजा गया था। समिति ने विधेयकों में कई बदलाव सुझाए थे। इनमें से बहुत से बदलावों को स्वीकार किया गया है। ऐसे में विधेयकों से जुड़े संशोधन लाने की बजाय नए ढंग से विधेयक लाए गए हैं।

गृहमंत्री ने कहा कि नए कानूनों के माध्यम से देशभर में एक जैसी न्याय प्रणाली लागू होगी। कहीं से भी कोई एफआईआर दर्ज करा सकेगा। अगले सौ साल में तकनीक के जितने उपयोग हो सकते हैं, उन्हें शामिल कर न्याय प्रक्रिया को तेज और सरल करने का काम किया गया है। उन्होंने कहा कि इसमें भारतीय न्याय अवधारणा का प्रकटीकरण किया गया है। पिछली संहिता और नई संहिता में अंतर स्पष्ट रूप से अनुक्रमणिका में दिखाई देता है। हमने महिलाओं और मानव अपराधों को प्राथमिकता देते हुए उन्हें ऊपर रखा है। सही मायने में इसे संविधान की भावना के अनुरूप बनाया गया है।

गृहमंत्री ने अपने भाषण में आतंकवाद, देशद्रोह और भीड़ हिंसा (मॉब लिंचिंग) पर विशेष फोकस किया। उन्होंने कहा कि इन्हें अभी तक ठीक से परिभाषित नहीं किया गया था। हमने आतंकवाद को स्पष्ट परिभाषित किया है ताकि कोई लूप होल न रहे। पहले राज्यों में यूएपीए की धारा नहीं लगाई जाती थी और आरोपित छोटी-मोटी सजा पाकर निकल जाते थे। आतंक को पारिभाषित करने से अब ऐसा नहीं होगा। राजद्रोह को देशद्रोह में बदला है। सरकार और शासन की बुराई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत ही रहेगी लेकिन देश की एकता और अखंडता के खिलाफ किसी कृत्य को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। शाह ने कहा कि भीड़ हिंसा का मुद्दा बनाकर हमारी सरकार को निशाना बनाया गया। कभी इसे कानून नहीं बनाया गया। हमारी सरकार ने भीड़ हिंसा को अपराध और कठोर दंड की श्रेणी में रखा है। उन्होंने बताया कि साइबर अपराधों को भी नई संहिता में शामिल किया गया है। वहीं दंड के तौर पर सामुदायिक सेवा के प्रावधान भी डाले गए हैं। उन्होंने कहा कि दुर्घटना कर के भाग जाने वालों को अब 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।

गृहमंत्री ने नई संहिताओं को तैयार करने से जुड़ी प्रक्रिया की जानकारी देते हुए कहा कि विस्तार से सभी का पक्ष जाना गया है। उन्होंने स्वयं इस विषय पर 158 बैठकें की हैं। करीब 3200 सुझावों पर विचार किया गया है। अटल सरकार में भी प्रयास किया गया था लेकिन गठबंधन सरकार के कारण यह संभव नहीं हो पाया। भाजपा सरकार ने अपने घोषणा पत्र में जिन विषयों को शामिल किया है, उन सभी को हमने इसमें शामिल किया है। हमारी सरकार में आंतरिक सुरक्षा से जुड़े विषयों पर विशेष काम हुआ है। जम्मू-कश्मीर, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र और पूर्वोत्तर में होने वाली घटनाएं कम हुई हैं और इसमें मृत्यु दर भी कम हुई है।

गृहमंत्री ने बताया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में पहले 484 धाराएं थीं, अब 531 धाराएं होंगी। 177 धाराओं में बदलाव किया गया है। 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं। 39 नए सब सेक्शन जोड़े गए हैं। 44 में परिभाषा को स्पष्ट किया गया है। 35 में समय सीमा को जोड़ा गया है और 14 घाराएं हटाई गई हैं। न्याय संहिता में पहले 511 धाराएं थीं, जिन्हें घटाकर 358 किया गया है। 21 नई धाराएं जोड़ी गई हैं। 41 में कारावास और 82 में जुर्माना बढ़ाया गया है। 25 में न्यूनतम सजा का प्रावधान जोड़ा गया है। 6 धाराओं में सामुदायिक सेवा को दंड के तौर पर शामिल किया गया है। 19 धाराओं को निरस्त किया गया है। साक्ष्य अधिनियम में पहले 167 धाराएं थीं, जिन्हें 170 किया गया है। 24 में बदलाव किया गया है। 2 धाराएं जोड़ी गई हैं और 6 हटाई गई हैं।

गृहमंत्री ने कहा कि नए प्रावधान के तहत 3 साल के भीतर मामलों का निपटारा होगा। पुलिस और वकील जवाबदेह बनेंगे। अपराधियों की सजा सुनिश्चित की जाएगी। पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग ना करे, इसका प्रावधान किया गया है। पहचान बदलकर यौन शोषण को अपराध बनाया गया है। संगठित अपराध के खिलाफ मजबूत कानून लाया गया है।

गृहमंत्री ने कहा कि हमने नई संहिताओं में आधुनिक तकनीक का उपयोग किया है। इससे कागजों के बड़े-बड़े ढेर समाप्त होंगे। सारी प्रक्रिया डिजिटल होगी। प्रक्रिया को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया जाएगा और डिजिटलाइज्ड किए जाने को नोटिफाई किया जाएगा। 2027 तक इस पूरी प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि अब कहीं से भी एफआईआर दर्ज कराई जा सकेगी। 15 दिन के अंदर उसे संबंधित थाने में भेजना होगा। हम ईएफआईआर का कॉन्सेप्ट लाए हैं। तलाशी के दौरान वीडियोग्राफी को अनिवार्य किया जा रहा है। सात साल से अधिक की सजा वाले कानून में फॉरेंसिक साक्ष्य जरूरी होंगे।

इसके अलावा हर जिले या थाने में एक-एक पुलिस अधिकारी नियुक्त होगा, जो हिरासत में लिए जाने का अधिकृत सर्टिफिकेट देगा। इससे बिना बताए लंबी हिरासत नहीं होगी। यौन अपराधों में पीड़िता का बयान जरूरी होगा और उसका रिकॉर्ड लिया जाएगा। सात वर्ष के कारावास से जुड़ी किसी भी धारा के मामले में पीड़ित का पक्ष सुने बिना केस समाप्त नहीं किया जा सकता है। नई संहिता में सामुदायिक सेवा से जुड़े दंड को भी प्रावधानों में जोड़ा गया है।

गृहमंत्री ने कहा कि छोटे-मोटे मामले अब समरी ट्रायल से निपटाए जाएंगे। इससे 40 प्रतिशत केस आसानी से निपटाए जा सकेंगे। 90 दिन में आरोप पत्र दाखिल करना अनिवार्य होगा और कोर्ट की अनुमति से पुलिस को 90 दिन और दिए जा सकेंगे। आरोप तय होने के 60 दिन के अंदर नोटिस दिया जाएगा। कोर्ट सुनवाई पूरी करने के बाद 30 दिन के अंदर अपना फैसला सुनाएगा। 60 दिन के अंदर फैसले को ऑनलाइन किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि नई संहिता में घोषित अपराधियों की संपत्ति कुर्क करने का भी प्रावधान जोड़ा गया है। महिलाओं और बाल अपराधों को पहले चैप्टर में लाया गया है और दूसरे चैप्टर में मानव अपराध होंगे। छोटी-मोटी चोट और अपंगता देने वाले अपराधों में फर्क किया जाएगा। अपंगता की स्थिति में 10 साल या आजीवन कारावास का प्रावधान होगा। अलगाव और अन्य विषयों की विस्तृत व्याख्या करके एक नया कानून लाया जाएगा और राजद्रोह कानून हटाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि अब भगोड़े अपराधियों को उनकी अनुपस्थिति में ट्रायल किया जा सकता है और सजा सुनाई जा सकती है। अगर उन्हें अपील करनी है तो उन्हें हमारी न्याय प्रक्रिया के तहत शरण में आना होगा और कोर्ट में पेश होना होगा। गृहमंत्री ने बताया कि अपराध या दुर्घटना में शामिल वाहन ट्रायल खत्म होने तक थानों में मौजूद रहते थे। अब उनकी वीडियोग्राफी करके जमा कराकर उनका निपटारा किया जा सकेगा।

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