Sunday, December 22, 2024

वर्चस्व की जंग में बाघ-बघेरे गंवा रहे जान

देश और प्रदेश के जंगलों में राज को लेकर बाघ-बघेरों में जंग छिड़ी हुई है। जंग भी ऐसी कि जिसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ रही है। जिस गति से जंगलों में बाघ-बघेरों का कुनबा बढ़ता जा रहा है उसे देखकर लगता है कि आने वाले वर्षों में वन्यजीवों के बीच संघर्ष कम नहीं होने वाला। वन्यजीव अभयारण्यों में बाघ-बाघिन की जमकर साइटिंग हो रही है। बाघ शावक अठखेलियां करते दिखाई देते हैं। ऐसे में वन्य पर्यटन भी तेजी से बढ़ रहा है। वन्यजीवों को देखने-निहारने के लिए जंगलों में टाइगर सफारी के शौकीनों की भीड़ बढ़ती जा रही है। देशी पर्यटकों के साथ विदेशी पर्यटक भी देश के विभिन्न बाघ अभयारण्यों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। मौजूदा हालात को देखकर लगता है कि बढ़ते कुनबे को रहने के लिए जंगल छोटे पड़ते दिखाई दे रहे हैं।

टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश में इस साल के अंत तक 38 बाघों की मौत चौंकाने वाली है। जबकि इसी अवधि में देश भर में यह आंकड़ा 168 जा पहुंचा है। इन मौतों के पीछे का कारण बाघों की टेरिटोरियल फाइट ही माना जा रहा है। ऐसे में यह स्थिति गंभीर खतरे की ओर संकेत करती दिख रही है। दुनिया के सर्वाधिक बाघों वाले देश में अब बाघ-बघेरों का बढ़ता कुनबा वन्यजीव प्रेमियों से लेकर सरकार और समाज के लिए चुनौति बनता जा रहा है। जंगलों में पहले से ही मानवीय दखल और जीवों के प्रति संवेदनहीनता भी कोढ़ में खाज के हालात पैदा करने वाली है।

मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ में बाघों की सर्वाधिक मौत
बाघों की मौत के आंकड़ों पर नजर डालें तो टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में बाघों के सर्वाधिक घनत्व के लिए पहचान रखने वाले बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में सबसे ज्यादा 11 बाघों की मौत हुई। कान्हा टाइगर रिजर्व में 8, पन्ना टाइगर रिजर्व में 5, सतपुड़ा में दो और पेंच में एक बाघ की मौत हुई। इनमें पन्ना की लकवाग्रस्त बाधिन पी-234 के दो शावक भी शामिल हैं। दोनों शावकों का एक नर बाघ ने शिकार कर लिया था। गौरतलब है कि वर्ष 2022 में 121 बाघों की मौत के मामले सामने आए थे। जबकि 2021 में 127 बाघों की मौत हुई थी।

बढ़ रही वर्चस्व की जंग
केन्द्र सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल 29 जुलाई को जारी देशव्यापी बाघों की गिनती में सबसे अधिक 785 बाघों की संख्या वाले राज्य का गौरव मध्यप्रदेश को मिला था। बाघों का कुनबा बढऩे के साथ ही उनके बीच टेरिटोरियल फाइट की घटनाएं भी आम हो गई है। इसमें पन्ना व बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के मामले सर्वाधिक सामने आते रहते हैं। यहां शिकारियों की आवाजाही के प्रमाण भी मिलते रहे हैं।

रणथम्भौर-सरिस्का भी सुर्खियों में
राजस्थान के वन्यजीव अभयारण्य या टाइगर रिजर्वों में भी बाघ-बघेरों के बीच खूनी संघर्ष की स्थिति भी कोई ज्यादा अच्छी नहीं कही जा सकती। रणथम्भौर नेशनल पार्क, सरिस्का टाइगर रिजर्व और राजधानी जयपुर का झालाना लेपर्ड रिजर्व में इन दिनों बाघ-बघेरों के बीच खूनी संघर्ष चल रहा है। यहां अपना वर्चस्व जमाने के लिए कोई भाई से लड़ रहा है तो कहीं बहनें और मां-बेटी के बीच संघर्ष चल रहा है। वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो ये हालात अभी थमने वाले नहीं हैं। इसका कारण प्रदेश में बाघ-बघेरों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी होना है और इनका आवास अथवा घर निरंतर सिकुड़ते जाना है। यही नहीं रणथम्भौर, सरिस्का और झालाना में नए शावक भी जन्म ले रहे हैं। ऐसे में जिम्मेदार महकमों को ठोस कदम उठाने ही होंगे।

समीप के जंगलों में ढूंढ रहे ठिकाना
करीब 1213 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सरिस्का टाइगर रिजर्व में वर्चस्व की लड़ाई में बाघ एसटी-4 की जान जा चुकी है। लेकिन कम चिंता की बात यह है कि यहां वर्तमान में युवा बाघों में टकराव के हालात ज्यादा सामने नहीं आ रहे हैं। इसका कारण यहां जंगल का क्षेत्र बड़ा होने से बाघ-बघेरों में टकराव की स्थिति कम ही है। फिर भी यहां से बाघ-बघेरे आसपास के जंगलों में अपना वर्चस्व स्थापित करने को आतुर रहते हैं। जयपुर के समीप करीब 20 वर्ग किलोमीटर में फैले झालाना लेपर्ड रिजर्व में वर्तमान में 40 से ज्यादा बघेरों का आवास है। इनमें करीब 15 युवा बघेरे अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए समीप के जंगलों में घूमते देखे जा रहे हैं। गौरतलब है कि इनमें सबसे ताकतवर कहे जाने वाले चार वर्षीय बघेरे राणा का अलग ही रुतबा है। राणा का अकेले ही आधे जंगल पर राज है, जहां वह किसी दूसरे बघेरे को देखना नहीं चाहता। खास बात यह कि राणा ने यह वर्चस्व यहां दस साल से कब्जा किए बैठे बघेरे बहादुर को खदेडकऱ स्थापित किया है। राणा के साथ बहादुर के संघर्ष में बहादुर को मात खानी पड़ी और वह बुरी तरह चोटिल हो गया। राणा के वर्चस्व का ही नजीता है कि यहां के आधा दर्जन अन्य बघेरे समीप के आमागढ़ के जंगल में अपनी टेरेटरी बनाने को मजबूर हो गए।

भाई ने किया टाइगर टी-121 को घायल
वर्चस्व की लड़ाई को लेकर राजस्थान के विख्यात रणथम्भौर नेशनल पार्क में खूनी सघर्ष से सब वाकिफ हैं। कई सालों से यहां यह सिलसिला जारी है। खास यह कि इस पार्क में रह रहे बाध-बाधिन एक ही परिवार के सदस्य रहे हैं। इनमें ज्यादातर भाई से भाई, बहने और मां बेटी के बीच खूनी संघर्ष चलता रहा है। इसके चलते कई गंभीर घायल हुए तो कइयों को जान से भी हाथ धोना पड़ा है। पिछले दिनों दो भाइयों टी-120 और टी-121 के बीच हुए भीषण संघर्ष में बाघ टी-121 बुरी तहत घायल हुआ था। इससे पहले बाधिन एरोहेड और उसकी बेटी रिद्धी, एरोहेड और उसकी मां मछली, रिद्धी और सिद्धी दोनों बहनों के बीच हुए संघर्ष के वीडियो खूब वायरल हुए थे। ऐरोहेड और बाघ योद्धा के बीच भी खूनी संघर्ष हुआ। बताया जाता है कि बाघिन टी-114 की मौत का कारण भी संघर्ष ही रहा।

गौरतलब है कि रणथम्भौर में वर्तमान में बाघों की संख्या करीब 75 है। इनमें आठ से दस शावक भी शामिल बताए जाते हैं। इस नेशनल पार्क से आए दिन संघर्ष की खबरें आती हैं और कई बार यहां घूमने आने वाले पर्यटकों को भी रोमांचित करने वाले नजाने देखने को मिल जाते हैं। टाइगर मूवमेंट की कहें तो यहां आसपास के गांवों यहां तक की नेशनल पार्क से लगते बड़े होटलों तक टाइगर का मूवमेंट आमतौर पर होता रहता है। बाघ के हमले में जंगल में लोगों की जान भी चली जाती है।

पछले दिनों में प्रदेश के अनेक भागों में वन्यजीवों के आबादी क्षेत्र में प्रवेश की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। एक तरफ  तेंदुए के संरक्षण की योजना शुरू करने वाला राजस्थान देश में पहला स्थान हासिल कर चुका है, वहीं दूसरी तरफ तेंदुओं के आबादी क्षेत्र में पहुंच कर इंसानों पर हमले की खबरें विचलित करने वाली हैं।

यूं तो प्रदेशभर में इन दिनों बाघ-बघेरे व तेंदुओं के हमलों से इंसानों को जीवन को खतरे के समाचार मिलते रहते हैं लेकिन बीते साल 2023 में झालावाड़ और करौली जिलों। की घटनाएं चिंताजनक हैं। इन दो जिलों में तेंदुए के हमले से आठ जने घायल हो गए। इससे पहले भी तेंदुए के हमलों में कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक सा है कि आखिर जंगल छोड़ कर वन्यजीव आए दिन गांव, कस्बे, ढाणी अथवा शहरों की इंसानी बस्तियों में क्यों घुस रहे हैं। इसका जवाब भी सीधा सा यही रहने वाला है कि जिस तरह जंगलों में इंसानों का दखल जिस गति से बढ़ता जा रहा है उससे ऐसी घटनाओं मेें इजाफा स्वाभाविक है।

देश में 13 हजार से अधिक तेंदुए
देश में वर्तमान में करीब पौने दो लाख वर्ग किलोमीटर जंगल वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र में आता है। वन्यजीवों से संबंधित आंकड़ों के अनुसार देश में तेंदुए के परिवार का कुनबा 13 हजार से अधिक है। राजस्थान में तेंदुओं की आबादी करीब 650 आंकी गई है। इसे एक अच्छा आंकड़ा कहा जा सकता है। प्रदेश में दस से अधिक तेंदुआ संरक्षित क्षेत्र हैं। इनमें से कई संरक्षित क्षेत्रों में लेपर्ड सफारी भी है। प्रदेश की राजधानी जयपुर देश का एकमात्र ऐसा शहर है जहां तीन लेपर्ड सफारी हंै। जिस प्रदेश में तेंदुए के संरक्षण के लिए इतनी कवायद चल रही है, वहां तेंदुओं का बस्ती में पहुंचकर लोगों पर हमला करना बहुत ही चिंता पैदा करने वाला है।

वन्यजीवों और इंसानों के बीच होने वाली भिडंत अथवा संघर्ष को टालने के लिए जरूरी है कि वन्यजीवों को उनके अनुरूप प्राकृतिक माहौल उपलब्ध करवाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने जरूरी हैं। इस दिशा में जंगल और आबादी क्षेत्र की न्यूनतम दूरी तय किए जाने, जंगल में बसी आबादी को अन्यत्र बसाने, जंगलों में अवैध रूप से खनन और पेड़ों की कटाई पर स्थायी रूप से रोक लगाने सहित वन्यजीवों के लिए जंगल के भीतर ही पर्याप्त भोजन व पानी का प्रबंध किए जाने की जरूरत है। उपरोक्त में सबसे अहम जंगलों में अवैध खनन और अन्य गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगाने के लिए जनप्रतिनिधियों को इस पर ईमानदारी से गौर करने और राजनीति से ऊपर उठकर प्रयास करने की जरूरत है।
-हरिओम शर्मा

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