Friday, November 22, 2024

प्रेम-विवाह कहां तक सफल रहते हैं?

विवाह प्राय: दो प्रकार के होते हैं एक प्रेम-विवाह और दूसरा माता-पिता द्वारा जांच-परख करके रिश्ते तय करके किया गया विवाह। लेकिन अंतिम फैसला लड़के-लड़की पर ही निर्भर होता है। इसमें स्तर, स्वभाव, आजीविका आदि सब पहलुओं पर विचार किया जाता है, लेकिन कई मामलों में माता-पिता एवं लड़के-लड़कियों की समझदारी के बावजूद गलत परिणाम निकल आते हैं।
प्रेम-विवाह का आजकल आम प्रचलन हो गया है। टीवी, केबल, डिश एवं अन्य चैनलों के अस्वाभाविक,  धारावाहिकों ने तो युवक-युवतियों की सोच को ही बदल दिया है। बिन फेरे-हम तेरे की प्रथा भी बढ़ी है, जो हमारी संस्कृति के अनुरूप नहीं है। प्रेम पहले विवाह बाद में कुछ हद तक यह उचित जान पड़ता है, परंतु हद से बाहर कुछ भी ठीक नहीं लगता। शादी के बाद लड़ाई-झगड़े फिर तलाक। बेहतर है कि कुछ जांच परख कर निर्णय किए जाएं। प्रेम विवाह जरा टेढ़ी खीर है। बहुत से मामलों में देखा जाता है कि विवाह से पहले जो प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए आकाश से तारे तोडऩे का दावा करता था, विवाह के बाद वही प्रेमी अपनी पत्नी के लिए फूल तक नहीं तोड़ सकते। पत्नी प्रेयसी नहीं बन पाती, पति प्रेमी नहीं बन पाता। प्रेमी भंवरा दूसरे फूलों पर मंडराने की ताक में रहता है। ऐसे में शक का दंश दोनों को छलनी-छलनी कर जाता है। तब दोनों का प्यार तकरार में बदल जाता है। जो दिवास्वप्न विवाह से पहले प्रेमी युगलों ने बाग-बगीचों में देखे होते है, वे तो घर की आटा-दाल की चक्की में चकनाचूर हो जाते हैं। इस संसार में घृणा प्रेम से ही नष्ट होती है। जब प्रेम किया है तो घृणा, लड़ाई और संशय कैसा। प्रेम ईश्वर का सबसे अच्छा और उत्तम वरदान है। विवाह उससे करना चाहिए जो आपको प्यार करता हो तो जीवन सरलता से गुजर जाता है। एक सफल, सुखी जीवन किसी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसका वैवाहिक जीवन कैसा है? विवाह करना एक सामाजिक आवश्यकता है। यह वह लड्डू है जिसे जो खाए वह भी पछताए, जो न खाए वह भी पछताए। परंतु अनुभवों के आधार पर कहना गलत न होगा कि विवाह एक प्यार का मंदिर है। जिसकी पूजा करते हुए जीवन यात्रा सुखद एवं पावन बन जाती है।
प्रेमी युगलों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि जहां प्रेम होता है, वहां नियम नहीं होते और जहां नियम  होते हैं वहां प्रेम नहीं होता। प्रेम के दो ही मापदण्ड हैं पहले दुनिया को भूल जाना, फिर स्वयं को भूल जाना। प्रेम संसार का मूल है- अत: जब प्रेम-विवाह कर ही लिया है तो उसे निभाएं और संसार को एक आदर्श पति-पत्नी का उदाहरण दें।
विजेन्द्र कोहली गुरदासपुरी – विभूति फीचर्स

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय