प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड गायब होने पर 42 साल बाद सजा पाए आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट के समक्ष दाखिल किसी आपराधिक अपील में यदि ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड गायब है तो उस केस में हुए निर्णय और आदेश को लागू रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस स्थिति में केस बंद कर देना चाहिए यही एकमात्र विकल्प है।
बलिया जिले के श्रीराम सिंह की आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव ने अपीललार्थी के विरुद्ध मुकदमे की कार्रवाई को समाप्त कर दिया तथा उसे ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा से बरी कर दिया है।
श्रीराम सिंह को हत्या केस का साक्ष्य नष्ट के मामले में 4 वर्ष कैद की सजा सुनाई गई थी। इसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। मामला वर्ष 1982 का है। हाईकोर्ट में अपील की सुनवाई शुरू हुई तो पता चला कि मुकदमे से संबंधित सभी रिकार्ड व दस्तावेज गायब है।
हाईकोर्ट ने जिला जज बलिया से रिपोर्ट मांगी तो बताया गया कि पुराना मामला होने के कारण मुकदमे से सम्बंधित रिकार्ड नष्ट किया जा चुके हैं। ऐसे में कोर्ट के समक्ष प्रश्न उठा कि यदि किसी मुकदमे का रिकॉर्ड गायब हो जाए और उसे पुनः तैयार करना या उस मुकदमे की फिर से सुनवाई करना संभव न हो तो अपीलेट कोर्ट के समक्ष क्या वैधानिक स्थिति होंगी।
हाईकोर्ट ने इस मामले में पूर्व में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई निर्णयों के हवाले से कहा कि यदि ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड गायब है तो पहला प्रयास होना चाहिए कि उसे पुनर्गठित किया जाए। यदि रिकॉर्ड पुनर्गठित करना संभव नहीं है तो मुकदमे की पुनः सुनवाई करने का प्रयास करना चाहिए। मगर महत्वपूर्ण दस्तावेजों के अभाव में यदि पुनः सुनवाई करना भी संभव न हो तो इस स्थिति में ट्रायल कोर्ट के आदेश को लागू रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और केस को बंद कर देना चाहिए। हाईकोर्ट ने अपीलार्थी श्रीराम सिंह के खिलाफ मुकदमा समाप्त करते हुए उसे सजा से बरी कर दिया।