Monday, December 16, 2024

ज्ञानवापी ही विश्‍वनाथ धाम है, इसे मस्जिद कहना दुर्भाग्‍य: योगी आदित्यनाथ

गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देश के चारों कोनों में आध्यात्मिक पीठों की स्थापना करने वाले आदि शंकर की काशी में की गई साधना के समय भगवान विश्वनाथ द्वारा ली गई परीक्षा के एक उद्धरण का उल्लेख करते हुए कहा कि दुर्भाग्य से आज जिस ज्ञानवापी को कुछ लोग मस्जिद कहते हैं वह ज्ञानवापी साक्षात विश्वनाथ जी ही हैं।

 

सीएम योगी शनिवार को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में ‘समरस समाज के निर्माण में नाथ पंथ का अवदान’ विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। यह दो दिवसीय संगोष्ठी गोरखपुर विश्वविद्यालय और हिंदुस्तानी एकेडमी प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की जा रही है। दीक्षा भवन में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री एवं नाथपंथ की अध्यक्षीय पीठ, गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने संतों और ऋषियों की परंपरा को समाज और देश को जोड़ने वाली परंपरा बताते हुए आदि शंकर का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि केरल में जन्मे आदि शंकर ने देश के चारों कोनों में धर्म-अध्यात्म के लिए महत्वपूर्ण पीठों की स्थापना की।

 

आदि शंकर जब अद्वैत ज्ञान से परिपूर्ण होकर काशी आए तो भगवान विश्वनाथ ने उनकी परीक्षा लेनी चाही। ब्रह्म मुहूर्त में जब आदि शंकर गंगा स्नान के लिए निकले तब भगवान विश्वनाथ एक अछूत के वेश में उनके सामने खड़े हो गए। आदि शंकर ने जब उनसे मार्ग से हटने को कहा तब उसी रूप में भगवान विश्वनाथ ने उनसे पूछा कि आप यदि अद्वैत ज्ञान से पूर्ण हैं तो आपको सिर्फ भौतिक काया नहीं देखनी चाहिए। यदि ब्रह्म सत्य है तो मुझमें भी वही ब्रह्म है जो आपमे है।

 

हतप्रभ आदि शंकर ने जब अछूत बने भगवान का परिचय पूछा तो उन्होंने बताया कि मैं वही हूं, जिस ज्ञानवापी की साधना के लिए वह (आदि शंकर) काशी आए हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि ज्ञानवापी साक्षात विश्वनाथ स्वरूप ही है। भारतीय ऋषियों-संतों की परंपरा सदैव जोड़ने वाली रही है। इस संत-ऋषि परंपरा ने प्राचीन काल से ही समतामूलक और समरस समाज को महत्व दिया है।

 

हमारे संत-ऋषि इस बात ओर जोर देते हैं भौतिक अस्पृश्यता साधना के साथ राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए बाधक है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अस्पृश्यता को दूर करने पर ध्यान दिया गया होता तो देश कभी गुलाम नहीं होता। संत परंपरा ने समाज में छुआछूत और अस्पृश्यता को कभी महत्व नहीं दिया। यही नाथपंथ की भी परंपरा है। नाथपंथ ने हरेक जाति, मत, मजहब, क्षेत्र को सम्मान दिया। सबको जोड़ने का प्रयास किया। नाथपंथ ने काया की शुद्धि के माध्यम से एक तरफ आध्यात्मिक उन्नयन पर जोर दिया तो, दूसरी तरफ समाज के हरेक तबके को जोड़ने के प्रयास किए।

 

 

सीएम योगी ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ जी की शब्दियों, पदों और दोहों में समाज को जोड़ने और सामाजिक समरसता की ही बात है। उनकी गुरुता भी सामाजिक समरसता को मजबूत करने के लिए प्रतिष्ठित है। यहां तक कि मलिक मुहम्मद जायसी ने भी कहा है, ‘बिनु गुरू पंथ न पाइये, भूलै से जो भेंट, जोगी सिद्ध होई तब, जब गोरख सौं भेंट।’ संत कबीरदास भी उनकी महिमा का बखान करते हैं तो गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, ‘गोरख जगायो जोग, भगति भगायो लोग निगम नियोग सों।’ सीएम योगी ने कहा कि संत साहित्य की परंपरा, इसकी श्रृंखला गुरु गोरखनाथ के साहित्य से आगे बढ़ती है। पीताम्बर दत्त ने गोरखवाणी को संकलित किया और इसके लिए उन्हें हिंदी में डी. लिट् की उपाधि प्राप्त हुई।

 

 

योगी ने समाजिक समरसता और समतामूलक समाज को लेकर संतों की पद्धतियों, साहित्य के कुछ उद्धरण भी दिए। उन्होंने कहा कि संत रामानंद ने उपासना विधि की एक विशिष्ट पद्धति को बढ़ाया लेकिन छुआछूत को कभी महत्व नहीं दिया। एक तरफ रविदास उनके शिष्य थे तो दूसरी तरफ कबीरदास। नाथपंथ की परंपरा के अमिट चिह्न सिर्फ देश के हर कोने में ही नहीं हैं बल्कि विदेशों में भी हैं। उन्होंने अयोध्या में गत दिनों तमिलनाडु के एक प्रमुख संत से हुई मुलाकात का उल्लेख करते हुए बताया कि संत से उन्हें तमिलनाडु के सुदूर क्षेत्रों की नाथपंथ की पांडुलिपियां प्राप्त हुई हैं। यहां गोरखनाथ से जुड़े अनेक साधना स्थल और नाथपंथ की परंपराएं आज भी विद्यमान हैं। कर्नाटक की परंपरा में जिस मंजूनाथ का उल्लेख आता है, वह मंजूनाथ गोरखनाथ जी ही हैं।

 

 

महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर दास की परंपरा भी मत्स्येंद्रनाथ जी, गोरखनाथ जी और निवृत्तिनाथ जी की कड़ी है। महाराष्ट्र में रामचरितमानस की तर्ज पर नवनाथों की पाठ की परंपरा है। पंजाब, सिंध, त्रिपुरा, असम, बंगाल आदि राज्यों के साथ ही समूचे वृहत्तर भारत और नेपाल, बांग्लादेश, तिब्बत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान समेत अनेक देशों में नाथपंथ का विस्तार देखने को मिलेगा। मुख्यमंत्री ने नाथपंथ की परंपरा से जुड़े चिह्नों के संरक्षण और उसे एक म्यूजियम के रूप में संग्रहित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय के महायोगी गुरु गोरखनाथ शोधपीठ इस दिशा में पहल कर सकता है।

 

उन्होंने शोधपीठ से अपील की कि वह नाथपंथ की इनसाइक्लोपीडिया में नाथपंथ से जुड़े सभी पहलुओं, नाथ योगियों के चिह्नों को इकट्ठा करने का प्रयास करे। मुख्यमंत्री ने कहा कि देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप नाथपंथ ने अपनी भूमिका को सदैव समझा।

 

जब देश बाहरी आक्रमण शुरू हो गए थे तब नाथपंथ के योगियों ने सारंगी वादन के जरिये समाज को देश पर आए खतरे के प्रति जागरूक किया। इसी तरह सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार करने में भी नाथपंथ अग्रणी रहा है। उन्होंने कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि महायोगी गोरखनाथ जी ने गोरखपुर को अपनी साधना से पवित्र किया।

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