देहरादून। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद में सहस्त्रताल की ट्रैकिंग पर गए पर्यटकों के बाइस सदस्यीय एक दल के प्राकृतिक आपदा में फंसने के कारण पांच ट्रैकरों की मौत हो गई जबकि चार अन्य लापता हैं। इस हादसे में 11 अन्य ट्रैकरों को सुरक्षित बचा लिया गया।
मंगलवार शाम से चल रहे रेस्क्यू अभियान में बुधवार को वायु सेना भी शामिल हो गई। अभी तक ग्यारह ट्रैकर्स को वायु सेना के हेलीकॉप्टर से सुरक्षित निकाल लिया गया है। अन्य दो ट्रैकर्स नजदीकी बेस कैंप में सुरक्षित थे, जो नजदीकी रोड हेड सिल्ला गांव के लिए पैदल निकले चुके हैं। घटना स्थल से पांच शवों को भी निकाला जा चुका है। इस हादसे में बाईस सदस्यों वाले ट्रैकर्स दल के बाकी चार सदस्यों की खोज एवं बचाव के लिए रेस्क्यू अभियान युद्ध स्तर पर जारी है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इस बीच दोपहर बाद इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण हेलीकाप्टर रेस्क्यू अभियान में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। जिसे देखते हुए जिलाधिकारी डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट ने घटनास्थल को भेजी गई जमीनी रेस्क्यू टीमों को तेजी से आगे बढ़ने को कहा है। उन्होंने बताया कि लगभग 35 किमी लंबे इस दुरूह हिमालयी ट्रैक पर घटनास्थल तक पहुंचने में भी रेस्क्यू टीमों को कुछ समय लग रहा है। जमीनी रेस्क्यू टीमें दो विपरीत दिशाओं से घटना स्थल की तरफ तेजी से आगे बढ़ रही हैं।
उल्लेखनीय है कि ट्रेकिंग दल के एक सदस्य ने मंगलवार की शाम को यह जानकारी जिला आपदा प्रबंधन, उत्तरकाशी तक पहुंचाई। इसके बाद जिला प्रशासन सक्रिय हो गया। कर्नाटक ट्रैकिंग एसोसिएशन के 22 सदस्सीय इस ट्रैकिंग दल ने पर्यटन और वन विभाग से 29 मई से सात जून तक की अनुमति ली थी। उत्तरकाशी के सिल्ला गांव से 29 मई को सहस्त्रताल के लिए रवाना हुआ।
इस दल में 18 ट्रैकर कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु और एक ट्रैकर पुणे (महाराष्ट्र) का शामिल हुआ है। इस दल के साथ तीन गाइड भी शामिल हैं जो उत्तरकाशी के निवासी है। बताया जाता है कि बेस कैंप से सहस्त्रताल समिट के लिए यह दल तीन जून को चला। समिट करने के बाद इस दल को बेस कैंप लौटना था। परंतु सहस्त्रताल क्षेत्र में वर्षा, हिमपात होने के कारण यह ट्रेकिंग दल बीच में ही फंस गया। साथ ही घना कोहरा छाने के कारण, ट्रेकिंग दल वापस बेस कैंप लौटने का रास्ता भटक गया। दल के सदस्य भी आपस में बिछुड़ गए। जिस कारण पूरे दल को वर्षा और हिमपात के बीच पत्थरों की आड़ में रात काटनी पड़ी।