मुंबई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भगवान ने हमेशा कहा है कि हर कोई उनके लिए समान है और कोई जाति या वर्ण नहीं है, उसके लिए संप्रदाय नहीं है, यह पंडितों द्वारा बनाई गई थी जो गलत है।”
उन्होंने कहा, “जब हम आजीविका कमाते हैं तो समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी होती है। जब हर काम समाज के लिए होता है तो कोई भी काम छोटा या बड़ा कैसे हो सकता है।
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि व्यक्ति कर्म से श्रेष्ठ होता है। नतीजतन व्यक्ति का जन्म कहां हुआ यह मायने नहीं रखता। व्यक्ति उसी धर्म का पालन करता है जो उसका मन, बुद्धि और संस्कारों से सुसंगत हो। बतौर भागवत शाश्वत धर्म कभी नहीं बदलता।
मुंबई के प्रभादेवी स्थित रविदास समाज पंचायत संघ और वसुधा चैरिटेबल ट्रस्ट की साझेदारी में आयोजित संत रविदास की 647वीं जयंती समारोह में मार्गदर्शन करते हुए सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि अपना देश, हिंदू समाज धर्म के आधार पर बडा हो, विश्व का कल्याण करे, यह हमारी भावना है।
मौजूदा समय में देश की परिस्थिति पूरे जगत में ऐसी है, हम सब कर सकते हैं, ऐसा स्वप्न देखना संभव है। यदि 40 वर्ष पूर्व कोई ऐसी बात कहता तो शायद उसकी हंसी उड़ाई जाती। डॉ. भागवत ने बताया कि बीते कुछ वर्षों में देश की प्रतिष्ठा और सामर्थ्य बढ़ा है।
संत रविदास के जीवनदर्शन पर सरसंघचालक ने कहा कि भगवत गीता में धर्म की व्याख्या करते समय सत्य, करुणा, अंदर-बाहर पवित्रता और तपस्या ऐसे 4 बिंदू प्रमुख माने गए हैं। इन बिंदुओं को छोड़कर कोई धर्म नहीं हो सकता। बतौर भागवत संत रविदास का जीवन दर्शन इन्ही चार बिंदुओं के इर्द-गिर्द घूमता नजर आता है।
इस अवसर पर डॉ. भागवत ने धर्मपरिवर्तन पर अपने विचार रखते हुए बताया कि सिकंदर लोधी ने संत रविदास को इस्लाम कबूल करने के लिए कहा तो रविदास जी ने इनकार कर दिया था। रविदास ने कहा था कि वेदों में बताया हुआ धर्म श्रेष्ठ है। धर्मपरिवर्तन न करने की वजह से सिकंदर लोधी ने संत रविदास को जेल में डाल दिया था लेकिन रविदास जी ने धर्मपरिवर्तन नहीं किया।
सरसंघचालक ने कहा कि मानव कल्याण के लिए धर्मपरिवर्तन की आवश्यकता नहीं होती,रविदास ने अपने आचरण से साबित किया था। वहीं छत्रपति शिवाजी महाराज का संस्मरण साझा करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि औरंगजेब ने जब काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ा और हिंदुओं पर अत्याचार प्रारंभ किए तब छत्रपति शिवाजी ने औरंगजेब को पत्र भेजा था कि राजा को लिए धर्म के आधार पर प्रजा को नहीं बांटना चाहिए। एक धर्म के लोगों का हित करते हुए यदि दूसरे धर्म के लोगों पर अत्याचार होंगे तो ऐसी हुकूमत के खिलाफ उन्हें तलवार लेकर उत्तर भारत की ओर जाना पड़ेगा।
श्रम पर विचार रखते हुए डॉ. भागवत ने बताया कि समता, कर्म और श्रम को अहमियत देंगे तभी हमारा सामर्थ्य बढ़ेगा। हमारे समाज मे श्रम को प्रतिष्ठा नहीं दी जाती। सरसंघचालक ने बताया कि भारत में बेरोजगारी की प्रमुख वजह श्रम प्रतिष्ठा का अभाव है।
मौजूदा समय में किसानों को कोई शादी के लिए बेटी देने को तैयार नहीं होता। डॉ. भागवत ने कहा कि भारत में 10 और दुनिया में 30 प्रतिशत से ज्यादा नौकरियां नहीं मिल सकती। नतीजतन श्रमनिष्ठा को कल्याणी मान कर चलना होगा। सरसंघचालक ने आह्वान किया कि समाज धर्म-जाती और विषमता के आपसी भेद मिटाकर स्नेह भाव बढ़ना चाहिए। अपने मन, बुद्धि और संस्कारों से सुसंगत धर्म का पालन कर श्रम को प्रतिष्ठा देनी होगी तभी भारत विश्वगुरु बनेगा और संत रविदास का नाम पूरे विश्व में जाना जाएगा।
मुंबई में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे संघ प्रमुख
संत शिरोमणि रोहिदास जयंती के अवसर पर मुंबई में एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि संत रोहिदास ने कहा कि कर्म करो, धर्म के अनुसार कर्म करो। पूरे समाज को जोड़ो, समाज की उन्नति के लिए काम करना यही धर्म है। सिर्फ अपने बारे में सोचना और पेट भरना ही धर्म नहीं है और यही वजह है कि समाज के बड़े-बड़े लोग संत रोहिदास के भक्त बनें।