हमारी समस्या यह है कि हम परमात्मा को केवल होंठों से पुकार रहे हैं। हृदय के भीतर परमात्मा की कोई प्यास नहीं जगी है। आत्मा से परमात्मा की कोई पुकार नहीं उठ रही है।
मनुष्य की यह महिमा है कि वह जो चाहे हो सकता है, वह जो भी चाहे उसे प्राप्त कर सकता है। पशु में यह योग्यता नहीं और तो और देवों के पास भी यह पात्रता नहीं। यह पात्रता केवल मनुष्य के पास है।
पात्रता पाकर भी और परमात्मा-परमात्मा पुकार कर भी मानव क्यों परमात्मा को प्राप्त नहीं कर पाता। इसका कारण क्या है। कारण स्पष्ट है, वह परमात्मा को मात्र पुकारता है, बहुत ऊपर से पुकारता है।
उसके भीतर परमात्मा की कोई प्यास नहीं है, क्योंकि प्यास प्रमाण है इस बात का कि वह पानी को खोज ही लेती है। दैहिक प्यास के सम्बन्ध में तो नियम थोड़ा जटिल भी है, क्योंकि प्यासे को कुंआ खोजना पड़ता है।
परमात्मा की प्यास का नियम तो सरलतम है। वहां तो प्यास ही एकमात्र शर्त है। यदि सच्ची प्यास होगी तो परमात्मा स्वयं उसके पास चला आता है, पर शर्त यही है कि चाहत और प्यास वास्तव में होनी चाहिए।