आज से शारदीय नवरात्र प्रारम्भ है, जिसमें शक्ति की आराधना की जायेगी। स्त्री में स्थित मातृशक्ति ही इस जगत की जननी है। वही ‘देवी शक्ति’ अथवा ‘पराशक्ति’ के नाम से जानी जाती है। भारत में देवी शक्ति के हजारों ही चिन्ह और धारणाएं मानी जाती हैं, उनकी पूजा, आराधना और स्मरण किया जाता है।
दुर्गा के रूप में वह सभी संकटों का निवारण करती है, काली के रूप में वह काल और अहंकार को मारती है। सरस्वती के रूप में वह ज्ञान-विज्ञान की दात्री है। लक्ष्मी के रूप में वही देवी सम्पदा और समृद्धि का वरदान देती है। तारा के रूप में वह जीवन में ज्ञान की दिशा दिखाती है और जगदम्बा के रूप में वह समस्त सृष्टि की जननी और माता कहलाई जाती है।
देवी के इन सभी स्वरूपों की उपासना में दया, क्षमा, करूणा, वीरता आदि महिमापूर्ण शक्ति का आह्वान किया जाता है। आइये हम इन शक्तियों के महत्व को समस्ते हुए अपने भीतर इन गुणों को आत्मसात करने का व्रत लें।
नवरात्र व्रतों का यही उद्देश्य है, किन्तु मात्र नौ दिन इन देवी रूपों की पूजा-अर्चना उपवास आदि से जीवन सफल नहीं होगा, बल्कि जीवन के हर दिन, हर पल, अपने कर्म और व्यवहार से दूसरों को सुख पहुंचाना यथा शक्ति और यथा सम्भव दूसरों का हित करना, पीडि़त की पीड़ा हरना, निष्पकट सेवा सहायता तथा दान करना ईश्वरीय सामीप्य पाने की पहली सीढी पर पांव रखना भर है।