ईश्वर अनुसंधान का विषय नहीं, उसकी तो भक्ति की जा सकती है, उस पर भरोसा किया जा सकता है, उससे प्रार्थना कर कुछ मांगा जा सकता है और कुछ पाया जा सकता है। मनुष्य के वश में बस इतना ही है।
उससे आगे उसकी सीमाएं समाप्त है, किन्तु हम ईश्वर के अस्तित्व पर कभी-कभी तर्क भी करते हैं। सागर विशाल है, जिसमें नन्हीं-नन्हीं मछली रहती हैं। उस मछली को सागर का ओर-छोर ज्ञात नहीं है, मछली उसके किनारे को छूने का प्रयास भी नहीं करती। वह सागर में रहती है और उसे इतना पता है कि इस जल के बिना वह जीवित नहीं रह सकती है।
इसलिए मछली सागर के जल से प्रेम करती है, किन्तु उसे कभी मापती नहीं। इसके विपरीत सबसे अधिक बहस आज तक मनुष्य ने परमात्मा को लेकर की है। वह परमात्मा के प्रति समर्पित भी नहीं है। उस पर पूर्ण भरोसा भी नहीं कर रहा कि वह जो करेगा उसके लिए अच्छा ही करेगा, किन्तु वह परमात्मा को पाना चाहता है, परमात्मा की शक्तियों, गुणों के बारे में जानने को उत्सुक है।
सृष्टि का रहस्य जानने के लिए आज तक सबसे अधिक खोजे की गई हैं, सबसे अधिक धन, श्रम और समय लगाया गया है। ये अनुसंधान मानव सभ्यता के विकास के लिए कम ईश्वर की सत्ता में हस्तक्षेप अधिक है।