किसी भी धर्म अथवा सम्प्रदाय में हिंसा का समर्थन नहीं किया गया है। वैदिक वांग्मय के अनुसार हिंसा तीन प्रकार की बताई गई है आध्यात्मिक, मानसिक व शारीरिक। आध्यात्मिक हिंसा वह है, जिससे अपनी आत्मा को मलिन कर लिया जाये। जब गन्दी मनोवृत्ति से दूसरों को हानि पहुंचाने का यत्न होगा तो ऐसा करने वाला आत्मघाती हो जायेगा। ईशोपनिषद के कथनानुसार वह घने अंधेरे में नीच योनियों में भेज दिया जायेगा।
मानसिक हिंसा वह है कि मन द्वारा दूसरों के प्रति बुरा चिंतन करना। मन के द्वारा यदि मैं किसी अन्य के लिए बुरा विचार करता हूं तो वह बुरे विचार मेरे मन को कलुषित कर देंगे और मैं स्वयं अपने मन की हिंसा करने वाला बन जाऊंगा।
शारीरिक हिंसा वह है कि अपने शरीर के द्वारा किसी को हानि पहुंचाना अथवा किसी के प्राण हर लेना। इन सब प्रकार की हिंसा से बचने के लिए ईशोपनिषद कहती है ‘यस्तु स्र्वाणि भूतान्यात्मन्ने वानु पश्यति, सर्व भूतेष् चात्मानम ततो न विजुगुप्ससे। अर्थात जो सम्पूर्ण प्राणियों में परमात्मा को देखता है वह सम्पूर्ण प्राणियों में आत्म स्वरूप को देखता है। उसके पश्चात वह कभी किसी से घृणा नहीं करता, घृणा रहित मन में हिंसा का भाव उभरेगा ही नहीं।