आज हमारा पवित्र पर्व दीपावली है। दीपावली का संदेश यह है कि हम देश में प्रेम और सौहार्द से रहें और उत्सव भी उस परम्परा के साथ मनाये, जो मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने स्थापित की।
भगवान राम की वनगमन के पश्चात वापसी पर दीये जलाकर खुशी मनाना तो बनता है, क्योंकि अब दुनियादारी कम्प्यूटर के युग में पहुंचे गयी है। जश्न के साथ टशन भी है। टशन इस बात की कि जगह-जगह पटाखे चलाये जा रहे हैं, जो वातावरण में जहर घोलकर सांस लेना मुश्किल कर रहे हैं और आश्चर्य तो यह है कि यह काम शिक्षित और दीक्षित लोग जो इस सच्चाई को जानते हैं, वे स्वयं अपने बच्चों को इन्हें उपलब्ध करा रहे हैं।
दीपावली वर्ष के बारह महीनों में कार्तिक का एक श्रृंगार है। इस महापर्व पर यदि हम अपनी परम्पराओं का पालन करते हुए अनुशासनबद्ध होकर चले, जैसे श्रीराम ने अनुशासन में रहते नीति मार्ग अपनाया, श्री गुरू नानक देव ने अपनाया, महर्षि देव दयानन्द ने अपनाया। तात्पर्य यह है कि हमारी महान आत्माओं ने सदा ही मानव कल्याण का कार्य किया है। दीये जलाकर खुशियां मनाने का प्रयोजन तभी सिद्ध होगा यदि हम प्रेम के साथ परोपकार के लिए स्वयं को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करें।
एक-दूसरे से दूनियां बनाकर नहीं, दूरियां मिटाकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है। दीपक से प्रेरणा लें, जो खुद जलकर दूसरों को प्रकाश देता है, अंधेरे को दूर कर मार्ग दिखाता है।