Thursday, July 25, 2024

अनमोल वचन

आज महर्षि दयानन्द की जन्म जयन्ती पर उनकी अन्तिम वसीयत का उल्लेख बहुत प्रासांगिक होगा, क्योंकि साधु-सन्तों की ऐसी वसीयत की कोई उपमा दूसरी नहीं मिलेगी। हमारे देश में प्राय: साधु-सन्तों की मृत्यु के पश्चात अग्रि में नहीं जलाया जाता। उनके मृत शरीर को दाहसंस्कार के बजाय भूमि में गड्ढा बनाकर बैठने की मुद्रा में दबा दिया जाता है, जिसे समाधि के नाम से जाना जाता है अथवा नदी में प्रवाहित कर दिया जाता। उसे जल समाधि का नाम दिया जाता है।

परन्तु महर्षि दयानन्द ने अपनी वसीयत में स्पष्ट शब्दों में कहा था ‘आर्यो मेरी मृत्यु के पश्चात मेरे शरीर को कहीं भूमि में न दबाया जाये न ही नदियों के जल में बहाया जाये, केवल मात्र वैदिक विधि से ही अग्रि में दाहकर्म किया जाये। राख और अस्थियों को किसी गरीब किसान के खेत में डालकर मिट्टी में दबाया जाये जो खाद बनकर किसान की उपज बढाने में सहायक हो।

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

मेरी स्मृति में कोई समाधि आदि भी न बनाई जाये, कहीं जड़ पत्थर पूजक लोग मेरे नाम पर भी कोई पाखंड खड़ा न करें। मैंने अपने जीवन में सदैव जिस पाखंड का खंडन किया है वही पाखंड जड़ पूजा मेरे नाम पर किसी रूप में नहीं की जाये। ऐसे महामानव को उनकी जन्म जयंती पर सादर नमन।

Related Articles

STAY CONNECTED

74,098FansLike
5,348FollowersFollow
70,109SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय