बार-बार विभिन्न योनियों में जन्म लेना दुख का हेतु है। इसी कारण योगीजन इन जन्मों के दुखों से छुटकारा पाने के लिए मुक्ति की प्राप्ति का प्रयास करते हैं, क्योंकि ऐसा प्रयास केवल मानव जीवन में ही किया जाना सम्भव है।
यह जीवन हमें दुखों से निवृत्ति पाने के लिए प्राप्त हुआ है। इस जीवन में यदि मनुष्य दुखी, चिंताग्रस्त होकर अज्ञानी बने रहकर अपना समय व्यतीत कर देता है, तो यह उसका दुर्भाग्य है। परमेश्वर ने मनुष्य को विवेकशील रूपी आभूषण से अलंकृत करके इस संसार में भेजा है।
मनुष्य को प्रतिपल आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। यह मानव जीवन का बहुत महत्वपूर्ण कर्तव्य है। इसे स्वयं की चिकित्सा भी कहा गया है। मन-वाणी और कर्म से कभी भी पाप न हो इसके लिए सदैव सजग और सतर्क रहो। इस बहुमूल्य धरोहर को प्राप्त करके मनुष्य को अपने जीवन में उल्लास, आनन्द एवं समृद्धि का संचार करना चाहिए।
भौतिक सम्पत्ति के साथ-साथ आध्यात्मिक सम्पत्ति अर्थात पुण्य कर्मों का संचय भी अवश्य करना चाहिए। भौतिक धन से तो केवल इस संसार की यात्रा सुखद बनती है, परन्तु आध्यात्मिक सम्पदा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। यही इस मानव जीवन का सर्वोत्तम लक्ष्य है।