आम बोल चाल में बहुधा यह शब्द प्रयोग किया जाता है कि मेरे कहने का ‘यह मतलब नहीं था। इसका तात्पर्य होता है कि हमने कहा कुछ और है, किन्तु समझने वाले ने उसका अर्थ कुछ और ही समझ लिया है। कहने और समझने के बीच का यह सफर शब्दों के मार्ग को तय करता हुआ जाता है।
जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार शब्दों के भी अनेक अर्थ होते हैं। एक ही शब्द के भिन्न-भिन्न संदर्भों में अलग अर्थ होते हैं। कहने वाला किसी बात को किसी रूप में कहना चाहता है और सुनने वाले उसे किसी और रूप में ग्रहण कर लेते हैं।
इससे सामान्य की चर्चा भी बहस का रूप धारण कर लेती है। बहस की स्थिति के चलते आपसी व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव तक देखने में मिलता है। भ्रम की स्थिति की उत्तरदायी वह समझ होती है, जो किसी बात को कहने और उस बात को समझने वाले व्यक्ति पर निर्भर करती है।
आजकल ऐसे अनेक मामले देखने में आते हैं, क्योंकि आजकल संवाद प्रत्यक्ष के बजाय आभासी रूप में अधिक होता है, जैसे सोशल मीडिया आदि पर प्राय: ऐसी भ्रम की स्थितियां उत्पन्न हो जाती है। शब्दों के उपयोग करने और समझने वाले पर निर्भर करता है कि उनमें शब्दों के उपयोग और समझने की क्षमता कैसी है। इसलिए आज के किसी संवाद में किसी सोच का निर्माण करने से पूर्व सावधानी बरती आवश्यक है।