कुछ सीखना चाहते हो, आपके भीतर ज्ञान की पिपासा है तो अपनी सारी विद्वता छोड़कर केवल बुद्धू बने रहने का प्रयास कीजिए। यह है तो कठिन क्योंकि जो वास्तव में ही बुद्धू है वह भी इस यथार्थ को स्वीकारता नहीं और जो कुछ जानता है अर्थात जिसे कुछ ज्ञान भी है उसके लिए तो और भी कठिन परन्तु यह असम्भव भी नहीं।
जिस दिन यह सम्भव हो जायेगा आप बुद्धत्व को प्राप्त होने लगेंगे। यह सारी सृष्टि ईश्वरमय है उसके कण-कण में ईश्वर व्याप्त है। जो निर्दोष भाव से केवल प्रभु भाव में खोकर इस संसार को देखता है उसे प्रभु के दर्शन होने लगते हैं। प्रभु को जान लेना ही बुद्धत्व है।
जितना कठिन विद्वता को पाना है उससे अधिक कठिन इसे त्यागकर बुद्ध हो जाना है, कयोंकि अज्ञानी ही स्वयं को बुद्ध मानने को तैयार नहीं फिर जो ‘कुछ ‘ जानता है उसके लिए तो यह स्वीकारोक्ति बहुत ही कठिन है, परन्तु सच्चाई यह है कि बुद्धू ‘बने ‘ बिना न परमात्मा के दर्शन होंगे और न ही बुद्धत्व की प्राप्ति होगी। बुद्धत्व की प्राप्ति ही तो जीवन का वास्तविक लक्ष्य होना चाहिए, जिसे केवल ‘मनुष्य’ ही प्राप्त कर सकता है।