Friday, November 22, 2024

अनमोल वचन

मनुस्मृति में मनुष्य को सत्यपरामर्श दिया है ‘सत्यम् ब्रुयात प्रिय ब्रुयात, बु्रयात सत्यम्प्रियाम् अर्थात सत्य बोलो, प्रिय बोलो, वह सत्य न बोलो जो अप्रिय हो। सत्य बोलना धर्म है अच्छा है, परन्तु सत्य भी ऐसा बोलना अच्छा है, जिससे सब प्राणियों का अत्यन्त हित होता हो वही हमारे मत में सत्य है।

सत्य का भाव यह भी है कि सारे संसार में जो सार और ग्राह्य वस्तु है उसी को ग्रहण करना चाहिए। संसार स्वयं और संसार के सकल पदार्थ जो दृष्टिगोचर हो रहे हैं ये एक समय में नहीं थे अथवा अव्यक्त थे। एक समय आयेगा जब ये नहीं रहेंगे। जो पदार्थ बना है उसका नाश भी होगा। इन पदार्थों में आसक्त न होकर केवल एक सत्य आत्मा के साथ ही प्रेम करना सत्य है।

सत्य ही को अपनाओ अनृत (झूठ) को नहीं परन्तु बोलते समय जहां सत्य को सामने रखे वहां यह भी याद रखो कि आपका सत्य कहीं आपको हिंसा का अपराधी तो नहीं बना रहा है। जैसे कोई वस्तु हो वाणी और मन के द्वारा जैसा ही व्यवहार होना या जैसा देखा अथवा अनुभव किया हो और जैसा सुना हो वैसा ही कथन करना और धारण करना सत्य है, किन्तु यह ध्यान रहे कि जिससे सब प्राणियों का उपकार हो और वह किसी प्राणी की हानि पीड़ा अथवा प्राण लेने का कारण न बने वह सत्य है। यदि इस प्रकार कही हुई वाणी प्राणियों का नाश करने वाली हो तो वह सत्य नहीं।

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