प्रत्येक व्यक्ति को यश की कामना होती है। कामना करना बुरा भी नहीं है, क्योंकि वह कामना ही हमें श्रेष्ठ कर्मों को करने की प्रेरणा देती है, किन्तु कुछ व्यक्ति थोडा करके अधिक यश और सम्मान चाहते हें। अल्प मात्रा में दान करके उसकी उद्घोषणा भी कराते हैं।
सामाजिक कार्यों में थोडे से योगदान का भी कई गुणा प्रचार कराते हैं और कुछ तो मात्र प्रचार के लिए ही ऐसा करते हैं, किन्तु यह मत भूलों कि जब तुम अन्य लोगों से सम्मान प्राप्ति की अपेक्षा रखोगे, स्वयं के यशोगान की कामना करोगे तो समझ लो कि मिथ्या अभियान ने तुम्हारे भीतर अड्डा जमा लिया है।
अपने अच्छे कार्यों से अपनी दृष्टि में पवित्र बनो, परन्तु उसके प्रचार की लेश मात्र भी कामना न करो। आपके सत्कर्मों की प्रशंसा लोग स्वयं ही करेंगे। कुछ व्यक्ति आलोचना भी करेंगे, परन्तु उसकी परवाह न करे। तुम्हारे पुनीत कार्य ही तुम्हारे मार्ग दर्शक बन जायेंगे। अच्छे लोग तुम्हारे अच्छे कार्यों की महत्ता समझेंगे, उसकी सराहना भी करेंगे। भ्रमित व्यक्तियों की आलोचनाओं से चिंतित होकर व्यर्थ में अपनी ऊर्जा नष्ट न करें। जन कल्याण की भावना से सबका हित करें। देश और जाति के लिए उत्तम कर्म करे, आपके पुण्यात्मक शुभ कर्मों की सुगन्ध सर्वत्र चली जायेगी। अच्छे आचरण, परोपकार, सेवा, दान आदि पुनीत कर्मों से ही कीर्ति और यश की प्राप्ति होती है।