परमात्मा की व्यवस्था के अनुसार कर्म फल का भोग निश्चित है। प्रभु की न्याय व्यवस्था निर्विवाद है। अमुक कर्म की फल प्राप्ति क्या और कब होगी यह ज्ञान केवल प्रभु को ही है। उसके यहां देर तो सम्भव है, पर अंधेर नहीं।
दूसरों से आप अपने पाप छिपा सकते हैं, परन्तु सर्वज्ञ परमात्मा तथा अपने से नहीं। इस जन्म में या अगले जन्मों में हर अच्छे-बुरे कर्म का प्रतिफल निश्चित ही भोगना होगा। कोई प्रायश्चित या तोबा इस प्रतिफल को प्रभावित नहीं कर सकती। कर्म फल एक ऐसा अमिट तथ्य है, जो आज नहीं तो कल भोगना ही है।
विलम्ब इसलिए होता है कि ईश्वर मानवीय बुद्धि की परीक्षा लेता है। परमात्मा ने मनुष्य को शुभ-अशुभ कर्म करने की स्वतंत्रता इसलिए प्रदान की है कि वह अपने विवेक को विकसित करके अच्छे-बुरे में अन्तर करना सीखे, दुष्परिणाम के शोक संतापों से बचने एवं सत्परिणामों का आनन्द लेने के लिए स्वत: अपना पथ निर्माण कर सकने में समर्थ हों। मर्जी उसकी है, क्योंकि भुगतना भी उसी को है।
प्रभु ने यह मानव शरीर शुभ कर्म करने और आत्म तत्व को प्राप्त करने के प्रयास करने के लिए दिया है। अच्छे और परहित के कर्म करके इसका सदुपयोग करे और कभी भूले से भी ऐसे अशुभ कर्म न करें, जिनका प्रतिफल दुख, पीड़ा और क्लेश के रूप में प्राप्त हो।