Sunday, June 16, 2024

अनमोल वचन

कर्म अणु के रूप में सदैव विद्यमान रहते हैं यहां तक कि प्रलय काल में कर्मों का लोप नहीं होता। कर्मों का प्रवाह अनवरत प्रवाहमान रहता है। योनियां असंख्य है कुछ मान्यताओं में 84 लाख योनियां मानी गई हैं। उस पर तर्क और विवाद की आवश्यकता ही नहीं है।

इन योनियों में जन्म लेने वाला जीव जन्मते ही कर्म करने में प्रवृत रहता है। हिलने-डुलने, खाने-पीने आदि कर्म करने की अनिवार्यता अनादि ही है, परन्तु यह  सत्य है कि किसी भी योनियो में एकमात्र मनुष्य योनि ही ऐसी है, जो विवेकशील होती है। पुण्य और पाप कर्मों को समझती है, उनके परिणामों से भी अनभिज्ञ नहीं है।

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

अन्य योनियो में जन्म लेने वाले सृष्टि के जीवधारी न तो विवेकशील होते है न ही उन जन्मों में कोई नये पुण्य या पाप कर्म करने में सामथ्र्यवान होते हैं। वे मात्र भोगते हैं। केवल मनुष्य योनि ही ऐसी योनि है, जिनमें नये पुण्य अर्जित करने का सुअवसर प्राप्त होता है।

दुख की बात यही है कि विवेक होते हुए भी मनुष्य योनि प्राप्त कर जीव पाप कर्म करता रहता है। इस प्रकार वह अपने कुछ पुण्य कर्मों के कारण मिली इस दुर्लभ मानव योनि को पाकर भी प्रभु प्रदत्त सुअवसर को गंवा देता है और पुन: उन्हीं शापित योनियो में भ्रमण करता रहता है।

Related Articles

STAY CONNECTED

74,188FansLike
5,329FollowersFollow
60,365SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय