Wednesday, April 16, 2025

अनमोल वचन

अर्थ (धन) सारे अनर्थों की जड़ है। इस अर्थ ने हमें इतना पगला दिया है कि हम रिश्तों के अर्थ भूल गये। बस अर्थ का ही अर्थ जानते हैं। सम्बन्धों का अर्थ हमसे कोसो दूर चला गया है। हम अपने रिश्तों को लाभ-हानि के तराजू पर तौल रहे हैं।

इस अर्थ के चक्रव्यूह में जब आदमी फंस जाता है वह कब ‘बेईमान+ की संज्ञा पा जाता है उसे पता ही नहीं चलता, मनुष्य धन के कितने भी बड़े भंडारों का स्वामी हो, सोना, चांदी, माणिक, मोती, मूंगा आदि के चाहे जितने आभूषण तथा सुन्दर वस्त्र शरीर पर धारण कर ले, उनसे आत्मा की शोभा नहीं बढ़ती, क्योंकि आभूषणों और सुन्दर बहुमूल्य वस्त्रों के धारण करने से देहाभिमान, विषयासक्ति और चोरी हो जाने का भय तो सम्भव है, परन्तु उनसे मन को शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती।

मनुष्य तो अपनी उत्तम विद्या, श्रेष्ठ गुण, कर्म, स्वभाव से ही शोभायमान होता है और श्रेष्ठ समाज में सम्मान का भागी होता है। धन पाने की इच्छा निर्धन के मन में हो यह तो स्वाभाविक है, किन्तु आश्चचर्य तब होता है, जब हर प्रकार की सम्पन्नता होते भी अधिक और अधिक धन पाने की लालसाये बढ़ती जाती हैं और अधिक धन बटोरने के चक्र में फंसकर पाप मार्ग को पकड़ लेता है। इस प्रकार वह परमात्मा के कोप का भागी बनता है।

यह भी पढ़ें :  मायावती ने आकाश आनंद को किया माफ,पार्टी में दी एंट्री, ससुर की गलतियां अक्षम्य, पार्टी में इंट्री नहीं
- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

76,719FansLike
5,532FollowersFollow
150,089SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय