Tuesday, April 1, 2025

अनमोल वचन

ऐसा सम्भव है कि कोई व्यक्ति आपसे कुछ मांगता है, विनती करता है, अपनी परिस्थितिजन्य समस्याओं से अवगत कराना चाहता है, आपकी सहायता अथवा मार्ग दर्शन की अपेक्षा करता है तो कई बार ऐसा हो जाता है कि उसकी पूरी बाते सुने और समझे बिना ही संयत शब्दों में उत्तर देने के स्थान पर आप अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं, आवेश में आ जाते हैं और ऐसी बातें मुंह से निकाल देते हो जो सामाजिक व्यवहार के प्रतिकूल हो। कोई भी ऐसी बात जो हमारे स्वाभाव के अनुकूल नही है तथा अपने स्वार्थ की पूर्ति न करती हो हमें अप्रिय लगती है। हम यह नहीं समझ पाते कि इस जगत में कोई भी मनुष्य पूर्णत: निर्दोष नहीं है। कोई भी मनुष्य स्वत: सम्पूर्ण नहीं, कोई भी मनुष्य पूर्ण बुद्धिमान नहीं। कुछ न कुछ दुर्बलताएं सब में हैं, आप में भी हैं, मुझ में भी हैं। जब तुम्हारी दुर्बलताओं को दूसरों को सहन करना पड़ता है तो तुम्हें भी जैसे भी सम्भव हो सके दूसरों के दुर्गणों और दुर्बलताओं को सहन करने में धीर होने की चेष्टा करनी चाहिए। हम सभी में पारस्परिक सहनशीलता होनी चाहिए। हमें एक दूसरे को आश्वासन पारस्परिक सहायता, शिक्षा और अपने-अपने अनुभवों पर आधारित उपदेश देते हुए और लेते हुए मिल-जुलकर उत्साह के साथ प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर रहना चाहिए।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

75,563FansLike
5,519FollowersFollow
148,141SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय