सुन्दरता शरीर से नहीं मन से निश्चित होती है, जिनके भाव, विचार और कर्म अच्छे होते हैं वे ही वास्तव में सुन्दर होते हैं, जो दूसरों को सुखी करने के लिए स्वयं अपने सुख का त्याग कर देते हैं, वे ही उदार पुरूष होते हैं। मनुष्य का स्वाभाव है कि वह अपने कष्टों और दुखों के लिए दूसरों को दोष देता है, परन्तु सच्चाई यह है कि हम जो दुख भोग रहे हैं वे हमारे ही कर्मों के परिणाम हैं उनके लिए हम स्वयं उत्तरदायी हैं, जो प्रभु भक्ति करना चाहे उसके लिए यही आरम्भ है कि वह किसी से बैर न रखे, सर्वदा सबसे प्रीति करे, सत्य बोले, भूले से भी असत्य का सहारा न लें, चोरी न करें, किसी के साथ कपट न करें, प्रभु की कृपा से कितना भी ऊंचापन प्राप्त हो कभी अभिमान न करें। राग-द्वेष त्यागकर अपने अंतर को शुद्ध रखें। आज के समय समाज में जहां भी हमारे सहयोग की आवश्यकता होती है, वहां से आंखे फेर लेते हैं, अनदेखी करते हैं, यदि सहयोग देते भी हैं तो अपने भीतर गर्व पाल लेते हैं कि हमने अमुक व्यक्ति का सहयोग किया। सदैव दूसरों के सहयोग की भावना रखने वाला और उसके लिए स्वयं को समर्पित करने वाला श्रेष्ठ मानव है।