किसी वस्तु को प्राप्त करने या क्रय करने के लिए कुछ समय बाद ही उससे विरक्ति होने लगती है। जब प्राप्त की तब सुन्दर लगी मनमोहक लगी, परन्तु आज उस वस्तु में यह परिवर्तन क्यों आया? जिस वस्तु के प्रति मेरी इतनी आसक्ति थी, जो मुझे प्राण प्रिय थी, उसमें क्यों परिवर्तन दृष्टिपात होने लगा। यह भाव मन को अवश्य विक्षिप्त करेगा, तब कहां रहेगी वह प्रसन्नता, वह शान्ति जो आपने अपनी भ्रांति से उस वस्तु में समझ ली थी? सच यह है कि संसार की हर वस्तु अपूर्ण है। किसी भी प्राणी अथवा पदार्थ को सृष्टिकर्ता ने पूर्ण नहीं बनाया है। आप किसी भी वस्तु की कामना करे, उसकी प्राप्ति एवं संरक्षण के लिए अन्य कामनाएं करनी पड़ेगी। आपने अकूत धन की कामना की तो पहले उसे प्राप्त करने के लिए ही कई उपक्रम करने होंगे और प्राप्ति के बाद भी उसकी सुरक्षा के लिए कुछ उपाय करने होंगे। किसी रूप में देखे तो अपने अनुभवों से भी आपको पता चलेगा कि कोई वस्तु ऐसी नहीं जो स्वतंत्र हो, जिसकी कामना उस तक ही सीमित रही हो, क्योंकि हर वस्तु है ही अपूर्ण और आप है पूर्ण का अंश। पूर्ण का अंश होने से आप चाहते हैं पूर्ण सुख जो अपूर्ण से मिलना असम्भव है। इसलिए अपनी ऊर्जा को ‘पूर्ण’ प्राप्त करने में लगाये।