आज विश्व पृथ्वी दिवस है न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर तापमान में लगातार हो रही वृद्धि तथा मौसम का बिगड़ता बिजाज गम्भीर चिंता का कारण बन गया है। यद्यपि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विगत वर्षों में दुनिया भर में बड़े-बड़े अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन होते रहे हैं, किन्तु उसके बावजूद इस दिशा में अभी तक ठोस कदम उठते नहीं देखे गये। वास्तविकता यह है कि राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रकृति के बिगड़ते मिजाज को लेकर चर्चाएं और चिंताएं तो बहुत होती हैं, तरह-तरह के संकल्प भी दोहराये जाते हैं, परन्तु धरातल पर जो कार्य होना चाहिए उसका शतांश भी नहीं हो पाता, क्योंकि सारे विश्व में सुख-साधनों की अंधी चाहत, सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि, अनियंत्रित औद्योगिक विकास और रोजगार के अधिकाधिक अवसर पैदा करने के दबाव के चलते इस प्रकार की चर्चाएं और चिंताएं अर्थहीन होकर रह जाती हैं। प्रकृति पिछले कुछ वर्षों से बार-बार भयानक आंधी, तूफान, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि आदि के रूप में गम्भीर संकेत दे रही है। हम प्रकृति से भयानक तरीके से जिस प्रकार का खिलवाड़ कर रहे हैं उसके फलस्वरूप दुनिया भर में मौसम कैसे बदल रहा है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उत्तरी ध्रुव के तापमान में असामान्य वृद्धि देखी गई। यह खतरे की घंटी है, सावधान हो जाईये।