एक विशेष बात जो सदैव विचारणीय है कि यदि धन सम्पत्ति और उत्तम संस्कार इन दोनों की तुलना करे तो धन की अपेक्षा उत्तम संस्कार अधिक मूल्यवान है। कारण यह है कि धन अधिक कमा लेने से अनेक बार व्यक्ति में अभिमान का दोष आ जाता है। अभिमान उत्पन्न हो जाने से उसके आचरण बिगड़ जाते हैं और आचरण बिगड़ा तो फिर दुख अपना साम्राज्य स्थापित कर लेता है और शान्ति-अशान्ति में बदल जाती है, किन्तु उत्तम संस्कारों की सहायता से व्यक्ति का जीवन शान्तिमय और सुखमय बना रहता है। वह सदैव शुभ कार्य करता है। परोपकार और सेवा कार्यों में उसकी रूचि बनी रहती है। परिणाम स्वरूप उस व्यक्ति का भविष्य सुन्दर शान्तमय और सुखदायी होता जाता है। इसलिए नैतिक और धर्म के मार्ग से धन कमाकर भी उचित मात्रा में संग्रह करें साथ ही संस्कारों की रक्षा होती रहे। धन और संस्कार दोनों आवश्यक है। धन आपके पास कितना भी हो अभिमान का दोष कभी न आने दे उत्तम संस्कारों को प्राथमिकता दे तभी आपका जीवन सफल शान्तमय और सुखमय होगा।