Sunday, November 3, 2024

अनमोल वचन

हम दूसरों को जानने का प्रयास तो बहुत करते हैं, परन्तु स्वयं को जानने की चेष्टा बिल्कुल नहीं करते। इस सम्बन्ध में एक कथा है। एक गांव से दस युवक मेला देखने निकले। कहीं खो न जाये इसलिए उन्होंने शाम को गिनती करने का निश्चय किया। उनमें से एक ने गिनती की तो गिनती नौ ही आई, क्योंकि उसने अपने को न गिनकर दूसरों को ही गिना था। इस पर बड़ी चिंता और फिर एक-एक करके सबने गिनती की, परन्तु हर बार गिनती नौ की ही आई, क्योंकि उनमें से प्रत्येक स्वयं को नहीं गिन रहा था। सब बड़े व्यथित थे। इतने में उधर से एक महात्मा निकले और उन्होंने गिनने वाले से कहा कि दसवें तुम हो तब उनकी बात समझ में आई। तात्पर्य यह है कि बाह्य को छोड़ स्वयं को देखो और सुधारो। इस प्रकार क्रमश: तुम स्वयं को देह, प्राण, इन्द्रियों, मन और बुद्धि को स्वयं समझना छोड़ इनके दृष्टा विशुद्ध आत्मा अनुभव करने लगोगे। ये तो उपरोक्त बाहरी आवरण है आत्मा इनसे पृथक है और वह तुम हो। इस प्रकार अपने को सतचित आनन्द स्वरूप जान लेना ही दुखों से मुक्ति का एकमात्र उपाय है।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय